Book Title: Jinabhashita 2001 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 20
________________ आँखे नहीं, आँसू पोंछो श्रीमती सुशीला पाटनी हैं ऐसे निरीह जानवरों की अखिोधि हैं, अनाथ | का स्वप्न देश का बबादार देश की उन्नति आँसू बहाने वाले इस दुनिया होना बन्द हो जाये, मांस निर्यात रुक में बहत हैं. लेकिन जो दसरों के अपने आँसू पोंछना धर्म नहीं, दूसरों के आँस। जाये। दुःखों में रोते हैं, आँसू बहाते हैं, पोंछना धर्म है। आज दुनिया में बहुत आँसू हैं, फिर आओ, हम सब मिलकर अपने दूसरों के आँसू पोंछते हैं, ऐसे लोगों भी हमारी आँखों में आँसू नहीं आ रहे हैं, हमारी आँखे देश से इस पशु वध को रुकवायें। की संख्या इस दुनिया में बहुत कम | गीली नहीं हो रही हैं। अहिंसा की पहचान आँखों से पशुवध रुकवाना ही आज की अनिहै। अब आप दूसरों के आँसू पोंछना नहीं, आँसुओं से होती है। लेकिन आँसू उन्हीं आँखों| वार्यता है। सीखिए। अपने आँसू तो सभी पोंछ | में आ सकते हैं, जिसके दिल में करुणा होगी, दया जंगल में रहने वाले भी अहिंसा, लेते हैं। अपने आँसू पोंछना धर्म नहीं, | होगी। करुणा का पालन करते थे और आज दूसरों के आँसू पोंछना धर्म है। आज शहरों में रह करके भी हममें अहिंसा दुनिया में बहुत आँसू हैं, फिर भी और करुणा नहीं है। हमारी आँख में आँसू नहीं आ रहे हैं, हमारी | पशओं को बचाना होगा। हमारी साक्षरता का क्या अर्थ है? वह आँखें गीली नहीं हो रही हैं। हमारे पास आँखें | सुनते हैं कि पहले देवताओं के लिये जंगली हाथी साक्षर नहीं था। वह हाथी किसी तो हैं, लेकिन आँसू नहीं। अहिंसा की पहचान पशुओं की बलि चढ़ाते थे, लेकिन आज स्कूल कालेज में नहीं पढ़ा था वह निरक्षर था, आँखों से नहीं, आँसूओं से होती है, लेकिन आदमी के लिए पशुओं की बलि चढ़ाई जा फिर भी उसमें मानवता थी, लेकिन हमारे आँसू उसी के आँखों में आ सकते हैं, जिसके | रही है। आदमी के लिये पश का कत्ल हो रहा | पास आज मानवता मर गई है। अरे! धर्म दिल में करुणा होगी, दया होगी। करुणा से है, देश की उन्नति के लिए पशुओं का वध करने वालो, जरा सोचो तुमने आज तक खाली दिल वाले की आँख में आँसू नहीं आ हो रहा है, खून, मांस बेचकर देश की उन्नति कितना धर्म किया, कितना दान दिया? सकते। आज जो मूक हैं, निर्दोष हैं, अनाथ का स्वप्न देश की बर्बादी का लक्षण है। कितना त्याग किया? जीवन में जीवित धर्म आदमी के पास भुजाएँ हैं, फिर उन भुजाओं का पालन करो। पशुओं के पास भी धर्म होता वे पश अपनी करुण पुकार कैसे कहें, क्योंकि का सही दिशा में पुरुषार्थ क्यों नहीं किया जा है, भले वे किसी मंदिर नहीं जाते। उनमें भी उनके पास वचन नहीं, वे बोल नहीं सकते। रहा है? आज भुजाओं से भी पैर का काम अहिंसा और करुणा होती है। आप जरा विचार, यदि हमें इन मूक पशुओं की बददुआ लिया जा रहा है। भला हुआ कि आदमी के कीजिए, जब एक हाथी भी एक खरगोश को लगी तो हमारा देश तबाह हो सकता है। आज पास सींग नहीं हैं, अन्यथा यह आदमी क्या अपने पैर के नीचे जगह दे सकता है, तो वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध कर दिया है कि क्या करता, पता नहीं। दूसरों के पैर तोड़कर जीवनदान दे सकता है फिर आप तो आदमी हिंसा, कत्ल की वजह से भूकम्प आते हैं। हम अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते। भारत हैं, क्या आप पशुओं को जीवनदान नहीं दे आज प्रकृति में जो घटनाएँ घट रही हैं, कहीं कृषिप्रधान देश है। यहाँ की जनता सदियों से सकते? अकाल, कहीं भूकम्प, कहीं हिंसा, ये सारे पशु-पालन और उसके माध्यम से अपना ___ आर.के. मार्बल्स लि., मदनगंज-किशनगढ़ रूप हिंसक कार्यों के ही हैं। हिंसा से सारी निर्वाह करती चली आ रही है। कृषि उत्पादन 305801, जिला- अजमेर (राजस्थान) प्रकृति आन्दोलित हो जाती है, क्षुब्ध हो जाती के क्षेत्र में गौ-वंश का उपकार भुलाया नहीं है, वातावरण उत्तेजित हो जाता है, पर्यावरण जा सकता। आज अध्यात्म के शिविर लगाने नष्ट हो जाता है। यदि हमारे देश में कत्ल होता में जितना पैसा खर्च किया जा रहा है यदि सूचना रहा, कत्लखाने खुलते रहे, मांस निर्यात होता वह पैसा मांसनिर्यात रोकने में लगाया जावे रहा तो क्या हमारा पर्यावरण सुरक्षित रह तो बहुत अच्छा होगा और अब शिविर शहर सकता है? और जब हमारा पर्यावरण ही नष्ट में नहीं, राष्ट्रपति भवन में लगाओ और वह हो जाये तब हमारी उन्नति का क्या अर्थ? शिविर दया का, अनुकम्पा का, करुणा, क्या विदेशी मुद्रा पर्यावरण को बचा लेगी? अहिंसा का हो जिससे लाखों करोड़ों जानवरों जब आदमी का ही जीना मुश्किल हो जायेगा, का कत्ल रुके। देश के राष्ट्रपति को देश की प्राप्ति स्थान- श्री गुलाबचन्द जी तब दुनिया की सारी संपत्ति किस काम की? पशु सम्पदा का ध्यान होना चाहिए, लेकिन बाकलीवाल पर्यावरण और स्वास्थ्य का ठीक रहना ही आज नहीं है, इसीलिए नागरिकों अब जागो मानव जाति का विकास है, पर्यावरण को और मूक पशुओं की आवाज को राष्ट्रपति 35/1, नार्थ राजमोहल्ला बिगाड़ करके हम अपने स्वास्थ्य को जिन्दा भवन तक पहुँचाओ, ताकि वह भवन पशुओं इन्दौर-2, म.प्र. नहीं रख सकते। अतः पर्यावरण की रक्षा के की पुकार से हिल उठे और पशुओं का कत्ल लिये हिंसा, कत्ल के काम छोड़ने होंगे, | 18 नवम्बर 2001 जिनभाषित इन्दौर जैनतिथि दर्पण निःशुल्क प्राप्त करें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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