Book Title: Jinabhashita 2001 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ संस्मरण सच्ची दीपावली ब्र. त्रिलोक जैन युगों युगों से भारतीय वसुन्धरा मंगल | हो। अरे, आज की रात तो वहाँ उजेला करो | अद्भुत आनंद को लूटें। और सिद्ध करें कि दीपों से आलोकित है। कारण चाहे कुछ भी जहाँ अंधेरा हो। मुनिश्री की करुणामय वाणी | हम महावीर और राम के सच्चे उपासक हैं, रहा हो, चाहे तो प्रभु महावीर ने अष्ट कर्मों को सुनकर श्रावक श्रद्धा से नतमस्तक हो गये। करुणा, दया, प्रेम, वात्सल्य हमारा धर्म है पर विजय प्राप्त कर मुक्तिरमा का वरण किया सूर्य अस्ताचल की ओर, श्रावक अपने घर | जो कि सबके लिये अंधेरे जीवन में दिव्य हो, चाहे मर्यादा पुरुषोत्तम राम रावण पर की ओर। रात्रि सघन हो इससे पहले हजारों | प्रकाश है। विजय प्राप्त कर लौटे हों। दीप तो जले ही लघु दीप झिलमिल प्रकाश बिखेरने लगे। दीपावली एवं भगवान महावीर की हैं। दीपावली की रात एक ऐसी पावन रात श्रावकगण बस निकल पड़े अन्धेरे की खोज | निर्वाण बेला में - है जहाँ आकाश में चाँद, तारें तो धरती पर में तो पूरे नगर में पाँच ऐसे स्थान पाये, जहाँ | वर्णी दि. जैन गुरुकुल, पिसनहारी की मढ़िया धृत दीप प्रकाश की मनोहारी छटा बिखेरकर अन्धकार का साम्राज्य व्याप्त था। जबलपुर-3 (म.प्र.) मानों आकाश से प्रतिस्पर्धा ही करते हों। लोग चुपचाप लेटे थे, ना कोई उमंग, कारण कोई भी हो मानव जाति आमोद-प्रमोद ना कोई उल्लास, बस समझो उदास। मायूस में लीन हो ही जाती है पर जिस नगर, गाँव फीकी-फीकी थी उनकी दीवाली की रात। तभी में कोई संत पुरुष विराजमान हों तो होली, उनके करीब किया किसी ने प्रकाश,, तो चुनाव सम्पन्न दीवाली का परमानंद एक साथ बरस उठता उठकर बैठ गये। उन्हें लगा, उनके पास कोई है। मुनि श्री करुणामूर्ति क्षमासागर जी अपने देवता खड़ा है, पर गौर से देखा तो आदमी दिगम्बर जैन मंदिर महासंघ गुरुवर विद्यासागर जी की आज्ञा से अपना ही अपने देवत्व के साथ खड़ा था। दीप जयपुर की कार्य कारिणी समिति के प्रथम चातुर्मास गढ़ाकोटा की पावन भूमि पर जलाने के बाद जब मिठाई का पैकेट उन त्रिवर्षीय चुनाव दिनांक 16 सितम्बर कर रहे थे, तभी एक दिन चातुर्मास की गरीबों को दिया तो देने वाले और लेने वाले व 2 अक्टूबर 2001 को श्री ताराचंद समापन बेला के पूर्व कुछ श्रावकों ने महाराज दोनों की आँखों में आँसू थे. उन गरीबों के जी जैन एडवोकेट व श्री कुन्दनमल जी से निवेदन किया कि महाराजश्री दीपावली मुख से हजारों दुआएँ निकल रही थीं, तो बगड़ा ने सम्पन्न करायें। जिसमें श्री कैसे मनायें? श्रावकों की आँखों से आनंद के आँसू। श्रावक रामचंद्र कासलीवाल अध्यक्ष, श्री ज्ञान प्रश्न में कुछ गहरी प्यास देखकर मुनिश्री जब चलने लगे तो गरीबों के मुख से बरबस चंद खिन्दूका व श्री कुबेर चंद्र काला ने मन्द-मन्द मुस्कराते हुए पूछा इसके पहले निकल पड़ा 'भगवान तुम्हारा भला करें'। उपाध्यक्ष, श्री अनूप चंद्र न्यायतीर्थ कैसे मनाते थे? सुनकर श्रावक बोले- आपको श्रावक जब अपने अभियान में सफल होकर क्या बतायें महाराज जी, बस अपने स्वार्थ मुनिश्री के पास पहुँचे तो नमोस्तु करते हुए मंत्री, श्री विपिन कुमार बज संयुक्त की चहारदीवारी में ही हमारी दीपावली मन गद्गद् कण्ठ से बोले- 'महाराज हम धन्य हो मंत्री एवं श्री लाल चंद्र मुशरफ जाती है। घर पर पकवान बनते हैं, तो इष्ट गये।' आज हमे लगता है जीवन सफल हो कोषाध्यक्ष चुने गये हैं। जबकि कार्यमित्रों के साथ मिल-बाँटकर खाते है और रात्रि गया। हमको हमारा मानव धर्म मिल गया। तो कारिणी के सदस्य के रूप में सर्वश्री में अपने घर को दीपों से प्रकाशित करते हैं। मेरे प्रिय पाठको, धन्य हैं वो गाँव जहाँ मुनिश्री भागचन्द जैन रस्सी वाले, श्री देवेन्द्र इतना कहकर श्रावक मुनिश्री की ओर देखने के पावन चरण पड़े और दीवाली की पावन कुमार साह, श्री बाबूलाल सेठी, श्री लगे तो मुनिश्री बोले बस इतना ही? तो | रात में गरीबों के अन्धेरे जीवन में उजाले हुए। राजमल छाबड़ा, श्री रतन लाल श्रावक बोले महाराज एक बात भूल गये। हम यदि अपने जीवन में भी हमें वही झागवाले, श्री प्रवीण चन्द्र छाबड़ा, श्री लोग परमात्मा के मंदिर में भी एक दीप आनन्द लूटना है दूसरों की अंधेरी दुनिया में माणक चन्द मुशरफ, श्री बलभद्र कुमार प्रकाशित कर आते हैं। ऐसा कहते हुए श्रावक रोशनी भरना है तो फिर क्यों न बढ़ चलें अपने जैन, श्री पूनम चन्द छाबड़ा, श्री प्रकाश मुस्करा रहे थे जैसे लंका जीत ली हो। तभी नगर के चारों ओर कहीं किसी कोने में, जो चन्द्र दीवान, श्री राजेन्द्र कुमार लुहामुनिश्री बोले- भैया इतना तो सभी कर लेते अपने अंधेरों में जिन्दगी के गम लिये पड़े हो, ड़िया, श्री महेन्द्र कुमार पाटनी, श्री हैं। जहाँ पर दीप पहले से जल रहे हैं वहाँ एक उनकी मदद के लिये उनके अंधेरे जीवन में योगेश कुमार टोडरका, श्री ताराचन्द दीप और रख दिया तो क्या? अरे, दीप ही प्रकाश भरने। चलो चलें, इसी में जिनशासन पाटनी, श्री ज्ञानचन्द ठोलिया, श्री रखना हो तो वहाँ रखो जहाँ अन्धकार का की सच्ची प्रभावना होगी और मिलेगा जीवन महावीर कुमार रारा एवं श्री प्रकाश चन्द साम्राज्य दीपावली की पावन रात में भी का सच्चा आनंद। सचमुच दूसरों की मदद स्थापित है। अरे, पकवान यदि खिलाने हैं तो का आनंद अद्भुत होता है। आओ, हम सब जैन (बासखो) निर्वाचित हुए। उन्हें खिलाओ जिनके पेट में रोटी भी न गई भी इस जीवंत कहानी से प्रेरणा लें। इस अनूप चन्द न्यायतीर्थ, मानद मंत्री 28 नवम्बर 2001 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36