Book Title: Jinabhashita 2001 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 34
________________ अष्ट दिवसीय विधान एवं पूजन शीतलचंद जैन प्राचार्य ने अपने विचार रखते हुए कहा कि आपने जो शिविर में सीखा, उसे जीवन में आचरित करना चाहिये। जो भी शिविर सानंद संपन्न संस्कार आप सभी में डाले है उन संस्कारों को धूमिल नहीं करना। नरसिंहपुर (कंदेली)। भगवान श्री महावीर स्वामीजी की । मेरठ समाज से हम सभी यही अपेक्षा रखते है कि आगे भी आप 2600वीं जन्म जयंती जो कि अहिंसा वर्ष के रूप में संपूर्ण विश्व | इसी प्रकार के धार्मिक शिविरों का आयोजन कराते रहे ताकि आपके में मनायी जा रही है उसके तारतम्य में विगत दिवस पार्श्वनाथ दिगम्बर | बच्चे सुसंस्कारित होकर कर्तव्यों का पालन कर सके। जैन मंदिर, कंदेली में परमपूज्य 108 संत शिरोमणि आचार्य इस अवसर पर ब्र. संजीव भैया कटंगी, भारतीय जैन मिलन विद्यासागर महाराज के परम शिष्य 105 पूज्य एलक दयासागर जी के राष्ट्रीय महामंत्री सुरेश जैन ऋतुराज ने भी अपने विचार रखे। महाराज के मंगल चातुर्मास के अंतर्गत धार्मिक एवं सांस्कृतिक तत्पश्चात विद्वानों का परम्परागत तरीके से श्रीफल एवं वस्त्रादि से आयोजनों की श्रृंखला में दिनांक 5 अक्टूबर से 12 अक्टूबर तक सम्मान किया गया। शिविर में 1050 शिविरार्थियों ने 25 कक्षाओं 8 दिवसीय पूजन शिविर का आयोजन सानंद संपन्न हुआ। में भाग लिया। सभी कक्षाओं में प्रथम एवं द्वितीय स्थान प्राप्त करने डॉ. सुधीर सिंघई| वाले शिविरार्थियों को विशेष पुरस्कार तथा प्रशस्ति पत्र देकर कंदेली, नरसिंहपुर, म.प्र. सम्मानित किया गया। समारोह के अन्त में उपा. श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने अपनी श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर-विद्वद्वर्ग पीयूषवाणी द्वारा कहा कि ज्ञान यज्ञ का यह कार्य निश्चित ही आप सभी द्वारा दशलक्षण पर्व पर प्रवचन प्रभावना के अंतस् में छाये अंधकार को दूर करने में माध्यम बनेगा तथा बना होगा। आज शिविरों की महती आवश्यकता है क्योंकि जब तक आपके सांगानेर (जयपुर)। प्रातः स्मरणीय पूज्य आचार्य श्री बच्चे संस्कारित नहीं होंगे, तब तक आपके जीवन में अशान्ति रहेगी। विद्यासागरजी के शुभाशीर्वाद एवं पूज्य मुनिवर श्री सुधासागरजी की चूँकि आज आप सभी की शिकायत रहती है कि मेरे बच्चे मेरी बात मंगल प्रेरणा से गत 5 वर्ष पूर्व आरंभ हुये श्री दि. जैन श्रमण संस्कृति नहीं मानते, बुराइयों की ओर कदम बढ़ा रहे है, क्या करें, रात दिन संस्थान- (आचार्य ज्ञानसागर छात्रावास) सांगानेर (जयपुर) राज. के आप सभी चिंतित रहते हैं आगे कैसे क्या होगा? अगर इन सभी विद्वद्वर्ग द्वारा दशलक्षण पर्व 2001 के पावन प्रसंग पर नि:स्पृह समस्याओं से आप समाधान पाना चाहते हैं तो आज धार्मिक संस्कारों भाव से प्रवचन-विधानादि विधाओं के द्वारा सम्यवज्ञान का प्रचार के बीजारोपण की महती आवश्यकता है। प्रसार करते हुए अनुपम धर्म प्रभावना की गयी। चातुर्मास समिति के चेयरमेन श्री प्रेमचंद जी जैन ने अंत में __ संस्थान के सम्यक्ज्ञान के प्रचार प्रसार में सम्यक् समर्पण को | शिविरार्थियों, शिक्षकों तथा प्रत्यक्ष-परोक्ष में शिविर की सफलता में देखते हुए भारत वर्षीय दि. जैन समाज के 15 प्रान्तों से लगभग | योगदान करने वालों का धन्यवाद ज्ञापित किया। 200 निमंत्रण इस सत्र में प्राप्त हुए थे लेकिन 150 विद्वान ही संस्थान प्रद्युम्न कुमार जैन शास्त्री द्वारा उपलब्ध कराये जा सके हैं। आगे और भी अधिक विद्वान उपलब्ध व्याख्याता कराने का प्रयास जारी है। इस पुनीत प्रसंग में भारतवर्षीय विभिन्न स्थानों की दि. जैन समाज द्वारा विद्वानों की नि:स्पृह भावना को भोपाल में शिक्षण शिविर सम्पन्न दृष्टिगत करते हुये अधिकाधिक सहयोग राशि संस्थान को प्रदान की है। एतदर्थ समाज के आभारी हैं। आचार्य श्री विद्यासागर जी की परम विदुषी शिष्या आर्यिकारत्न प्रद्युम्न कुमार जैन 'शास्त्री' | पूर्णमती जी और उनके संघ के सान्निध्य में श्री दि. जैन मंदिर टिन शेड, टी.टी. नगर में दिनांक 21.10.2001 से 28.10.2001 धार्मिक एवं नैतिक शिक्षण शिविर का तक जैनधर्म शिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। इसके कुलपति समापन सम्पन्न पं. रतन लाल जी बैनाड़ा थे। लगभग 500 शिक्षार्थियों ने बालबोध पूर्वार्द्ध एवं उत्तरार्द्ध, छहढाला, रत्नकरण्डश्रावकाचार और पूजनविधि मेरठ (उ.प्र.)। 25.10.2001 पू. उपा. 108 श्री की शिक्षा प्राप्त की। शिक्षण कार्य दि. जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, ज्ञानसागरजी महाराज ससंघ के सान्निध्य में महावीर जयन्ति भवन के विशाल प्रांगण में धार्मिक एवं नैतिक शिक्षण शिविर के समापन सांगानेर (जयपुर) के ब्रह्मचारी बन्धुओं ने किया। पं. रतनलाल जी का शुभारम्भ मंगलाचरण से हुआ। शिविर के संचालक पं. प्रद्युम्न बैनाड़ा रत्नकरण्डश्रावकाचार की कक्षा लेते थे। उनकी समझाने की कुमार शास्त्री ने 18 अक्टूबर से 25 अक्टूबर 2001 तक लगाये शैली विनम्र और मधुर थी जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किये रहती थी। गये शिविर की उपलब्धि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जो बच्चे रात्रि में बैनाड़ा जी द्वारा शंका समाधान का ज्ञानवर्द्धक कार्यक्रम होता कभी मंदिर नहीं जाते थे वे आज मंदिर में प्रवचन में दिख रहे हैं। | था। आर्यिकारत्न श्री पूर्णमती जी 'समयसार' के पुण्यपापाधिकार पर यह सब सन्तों तथा शिविरों का ही प्रभाव है। शिविरों के माध्यम प्रवचन करती थीं, जिससे श्रावकों ने पुण्यपाप की समानता और से जीवन में संस्कारों का बीजारोपण होता है अत: आज के | भिन्नता के अनेकान्तात्मक स्वरूप को युक्तिसंगत ढंग से हृदयंगम भौतिकवादी युग में इनकी उपादेयता और भी अधिक बढ़ गयी है। | किया। इस प्रकार शिविर अत्यंत लाभप्रद रहा। शिविर के एवं श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर के निदेशक डॉ. श्रीपाल जैन 'दिवा' 32 नवम्बर 2001 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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