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ऐसा स्वीकार करने पर मानुषोत्तर पर्वत के समीप में स्थित होकर बाह्य मानकर यदि 22.50 लाख योजन अर्द्धव्यास एक वृत्त खेंचा जावे दिशा में उपयोग करने के ज्ञान की उत्पत्ति न हो सकने का प्रसंग तो जितना क्षेत्र आता है, उतना इस ज्ञान का क्षेत्र मानना चाहिए। होगा। यह प्रसंग आवे तो आने दो, यह कहना भी ठीक नहीं, क्योंकि अर्थात् यदि इस ज्ञान के धारी मुनिराज मानुषोत्तर पर्वत के किनारे उसके उत्पन्न हो सकने का कोई कारण नहीं है। क्षयोपशम का तो पर खड़े हों तो वे सुदर्शन मेरु की तरफ 22.50 लाख योजन और अभाव है नहीं, और न ही मनःपर्यय के अनिन्द्रिय प्रत्यक्ष का मानुषोत्तर | मानुषोत्तर के बाहर 22.50 लाख योजन क्षेत्र के भीतर स्थित पर्वत से प्रतिघात होना संभव है। अतएव 'मानुषोत्तर पर्वत के भीतर' चिन्तवन करने वाले जीव के विचारों को जान लेंगे और यदि मन यह वचन, क्षेत्र का नियामक नहीं है, किन्तु 'मानुषोत्तर पर्वत के भीतर' में चिन्तित पदार्थ इतने ही क्षेत्र के अंदर स्थित है, तो उसे भी जानेंगे। 4500000 योजनों का नियामक है, क्योंकि विपुलमतिज्ञान का यदि चिन्तित पदार्थ इस क्षेत्र के बाहर है तो नहीं जान सकेंगे। उद्योत सहित क्षेत्र को घनाकार से स्थापित करने पर 4500000 | विपुलमतिमनःपर्यय का उत्कृष्ट क्षेत्र ऊँचाई मेरु के बराबर योजन मात्र ही है।
अर्थात् एक लाख योजन बनता है। अतः यदि कोई व्यक्ति मेरु की उपर्युक्त कथन से स्पष्ट है कि मानुषोत्तर पर्वत, क्षेत्र का चूलिका के ऊपर स्थित सौधर्म स्वर्ग के विमान की कोई बात मन नियामक न होकर 45 लाख योजनों का नियामक है। अर्थात् | में विचार रहा हो तो वे मुनिराज उसके विचार को तो जान सकेंगे, विपुलमतिमनःपर्यय ज्ञानी मुनि जहाँ पर स्थित हों, उसको केन्द्र बिन्दु | परन्तु सीमा से बाहर होने के कारण पदार्थों को नहीं जान सकेंगे।
गीत
भूले-बिसरे अपने को
दो कविताएँ
डॉ. सुरेन्द्र जैन 'भारती'
ऋषभ समैया 'जलज' भूले-बिसरे अपने को जमकर जकड़े सपने को
दशा/दिशा
भीतर कोलाहल-हलचल बैठे माला जपने को
पाप-कषायी जंग चढ़ी छोड़ा नर-भव खतने को
भाव-भासना-भान नहीं लगे ऋचाएँ रटने को
कच्चे मिट्टी के बर्तन भट्टे डालो पकने को
एक दिशा में चार चले समझो, कुछ कंधे पर है। चार दिशा में एक चले समझो, वह धंधे पर है। न एक दिशा न चार दिशा है सही दिशा वह जो दशा-दिशा बदले। यदि बदल सकी यह दिशा-दशा तो समझो, वह अपने पर है।
लड़ाई उसूलों की लड़ाई बसूलों से हो रही है यह मैं नहीं कहता सारी जनता कह रही है यह किसकी, किससे, कैसी लड़ाई है जिसमें न क्रान्ति है, न शान्ति है बस एक भान्ति है।
एल-65, न्यू इंदिरा नगर, बुरहानपुर
आकुलता की बारिश में समता छाता बचने को
धर्म बिलोना माखन सा नय की डोरी मथने को
सम्यक बीज बुआई कर संयम सोंच पनपने को
हटें विकारों के बादल आतम-सूर्य चमकने को
निखार भवन कटरा बाजार, सागर
-नवम्बर 2001 जिनभाषित
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