Book Title: Jin Pujan
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ हूँ स्वयं ही पर का कर्ता, मिथ्या भ्रम सारी जड़ता। समकित की धूप मिले तो, सारे बंधन हर लेता । श्री अजितनाथ जिनराजा, मेरे उर माहिं समा जा। यहाँ कोई नहीं सहारा, प्रभु तारण तरण जहाजा ॥7॥ श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। निज सुख पलभर न पाया, सुख दुख फल में भरमाया। शिव सुख फल रस का प्याला, अब जी भर पीने आया । श्री अजितनाथ जिनराजा, मेरे उर माहिं समा जा। यहाँ कोई नहीं सहारा, प्रभु तारण तरण जहाजा ॥8॥ श्री अजितनाथजिनेन्दाय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अबतक कई अर्घ्य चढ़ाये, प्रभु एक नहीं मन भाये। वसु द्रव्य चढ़ा प्रभु आगे, यह दास चरण सिर नाये। ॥ श्री अजितनाथ जिनराजा, मेरे उर माहिं समा जा। यहाँ कोई नहीं सहारा, प्रभु तारण तरण जहाजा ॥9॥ श्री अजितनाथजिनेन्दाय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। पंचकल्याणक ज्ञानोदय छंद कृष्ण अमावस ज्येष्ठ मास को, विजया माता हर्षाए । विजय विमान त्याग कर प्रभुजी, नगर अयोध्या में आए ॥ 1 ॥ ऊँ हीं ज्येष्ठकृष्णामावस्यायां गर्भमंगलमंडिताय श्री अजितनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 11

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 188