Book Title: Jeevvichar Navtattva
Author(s): Hiralal Duggad Jain
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 6
________________ उब्भामग उक्कलिया, मंडलि मह सुद्ध गुंजवाया य,। घण-तणु-वायाईआ, भेया खलु वाउकायस्स ॥ ७ ॥ ____ऊँचा बहने वाला, नीचे बहने वाला, गोलाकार बहनेवाला, आँधी, मंद बहने वाला, गुंजार करता हुआ वायु, घणवात और तनवात आदि वायुकाय जीवों के भेद हैं ॥ ७ ॥ साहारण पत्तेया, वणस्सइजीवा दुहा सुए भणिया,। जेसिमणंताणं तणू, एगा साहारणा ते उ॥८॥ शास्त्र में वनस्पति (काय) के जीव दो प्रकार के कहे गए हैं - साधारण (वनस्पति काय) और प्रत्येक (वनस्पति काय) । जिन अनन्त (जीवों) का एक शरीर (हो) वे (जीव) तो साधारण वनस्पतिकाय कहलाते हैं ॥ ८ ॥ कंदा अंकुर किसलय, पणगा सेवाल भूमिफोडा य,। अल्लयतिय गज्जर, मोत्थ वत्थुला थेग पल्लंखा ॥९॥ कोमल-फलं च सव्वं, गूढसिराइं सिणाइ-पत्ताइं,। थोहरि कुंआरि गुग्गुलि, गलोय पमुहाई छिन्नरुहा ॥१०॥ (आलू, सूरन, मूली आदि) कन्द, अंकुर, कोपलें, पाँच रंग की फुल्ली जो कि बासी अन्न पर पैदा हो जाती है। सेवाल, वर्षा में पैदा होने वाली छत्राकार वनस्पति, तथा आर्द्रकत्रिक (हरे तीन अद्रक-हल्दी-कचूंरक) गाजर, नागरमोत्था, बथुआ, थेग (नामक कन्द) पालखी सब प्रकार जीवविचार

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