Book Title: Jeevvichar Navtattva Author(s): Hiralal Duggad Jain Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar View full book textPage 5
________________ स्फटिक, मणि, रत्न, प्रवाल, हिंगुल, हरताल, मैनसील, पारा, सोना आदि धातुएँ, खड़िया, हरमची (सोना गेरु), पत्थरों के टुकडों से मिली हुई सफेद मिट्टी, पलेवक अबरक, तूरी (फटकडी), क्षार, मिट्टी और पत्थर की अनेक जातियाँ, सुरमा नमक, ( १ ) इत्यादि पृथ्वीकाय (जीवों) के भेद ( हैं ) ॥ ३-४ ॥ भोमंतरिक्ख- मुदगं, ओसा हिम करग हरितणू महिया, । हुति घणोदहिमाई, भेयाणेगा य आउस्स ॥ ५ ॥ भूमि का और आकाश का पानी, ओस, बर्फ, ओले, हरी वनस्पति के ऊपर फटकर निकला हुआ पानी, छोटे छोटे जल के कण जो बादलों से गिरते हैं अथवा कोहरा तथा घणोदधि आदि अप्काय (जीवों) के अनेक भेद हैं ॥ ५ ॥ इंगाल जाल मुम्मुर, उक्कसणि कणगविज्जुमाइआ । अगणि-जियाणं भेया, नायव्वा निउण-बुद्धिए ॥ ६ ॥ अंगार, ज्वाला, कंडे अथवा मरसाय की गरम राख में रहने वाले अग्निकण, उल्कापात, आकाश से गिरने वाली चिनगारियाँ, आकाश से तारों के समान बरसते हुए अग्नि के कण, बिजली इत्यादि अग्निकाय जीवों के भेद सूक्ष्म बुद्धि से समझने योग्य हैं ॥ ६॥ ४ जीवविचार-नवतत्त्वPage Navigation
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