Book Title: Jeevvichar Navtattva Author(s): Hiralal Duggad Jain Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar View full book textPage 9
________________ चउरिंदिया य विच्छू, ढिंकुण भमरा य भमरिया तिड्डा, । मच्छिय डंसा मसगा, कंसारी कविल डोलाई ॥१८॥ बिच्छू, ढिंकुण, भौंरा, बरें, टिड्डी तथा मक्खी-मधु मक्खी, डांस, मच्छर, कंसारिका, मकड़ी, डोलक (हरे रंग की टिड्डी) आदि चार इन्द्रियों वाले (चतुरिन्द्रिय) (जीव हैं) ॥१८॥ पंचिंदिया य चउहा, नारय तिरिया मणुस्स देवा य, । नेरइया सत्तविहा, नायव्वा पुढवी-भेएणं ॥१९॥ और पांच इन्द्रियों वाले (जीव) चार प्रकार के हैं - नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव । पृथ्वी के भेद से नरक में रहने वाले जीव सात प्रकार के जानना ॥ १९ ॥ जलयर थलयर खयरा, तिविहा पंचिंदिया तिरिक्खा य,। सुसुमार मच्छ कच्छव, गाहा मगरा य जलचारी ॥ २० ॥ पानी में रहने वाले, पृथ्वी पर रहने वाले, और आकाश में उड़ने वाले तीन प्रकार के पंचेन्द्रिय तिर्यंच(हैं) । सूंस, मछली, कछुआ, घड़ियाल और मगरमच्छ पानी में रहने वाले जीव(हैं) ॥ २०॥ चउपय उरपरिसप्पा, भुयपरिसप्पा य थलयरा तिविहा, । गो-सप्प-नउल-पमुहा, बोधव्वा ते समासेणं ॥ २१ ॥ स्थलचर (जमीन पर रहनेवाले) तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव तीन प्रकार के हैं । चार पैरों वाले (चौपाए), छाती के बल जीवविचार-नवतत्त्वPage Navigation
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