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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
भावार्थ - हे भगवन्! जंबूद्वीपगत भरत क्षेत्र में वैताढ्य संज्ञक पर्वत कहाँ बतलाया गया है ? हे गौतम! उत्तरार्द्ध भरत क्षेत्र की दक्षिण दिशा में, दक्षिणार्द्ध भरत क्षेत्र की उत्तर दिशा में, लवण समुद्र के पूर्वीय भाग के पश्चिम में, पश्चिमी भाग के पूर्व में, जंबूद्वीप के अंतर्गत भरत क्षेत्र में वैताढ्य पर्वत विद्यमान है। उसकी लम्बाई पूर्व पश्चिम में तथा चौड़ाई उत्तर दक्षिण में है । वह दो पावों में दो ओर से लवण समुद्र का स्पर्श करता है। अपने पूर्वी छोर से लवण समुद्र के पूर्वी भाग तथा पश्चिमी छोर से लवण समुद्र के पश्चिमी भाग का स्पर्श करता है। वह पच्चीस योजन ऊँचा तथा सवा छह योजन जमीन में गहरा है। इसकी लम्बाई पंचास योजन है ।
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उसकी बाहा -दक्षिण-उत्तर में व्याप्त वक्राकार आकाश प्रदेश पंक्ति पूर्व-पश्चिम में ४८५ १६ योजन है। उत्तर में वैताढ्य पर्वत की जीवा पूर्व एवं पश्चिम दोनों ओर से लवण समुद्र का संस्पर्श करती है। वह पूर्वी छोर से लवण समुद्र के पूर्वी भाग का तथा पश्चिमी छोर से लवण समुद्र के पश्चिमी भाग का स्पर्श किए हुए है। जीवा की लम्बाई १६७२०- योजन है। दक्षिण में उसकी धनुष पीठिका की परिधि १०७४३- योजन है।
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वैताढ्य पर्वत रुचक संस्थान - गले में धारण करने योग्य आभरण विशेष के आकार में विद्यमान है। वह संपूर्णतः रजतमय है, स्वच्छ, चिकना, घिसा हुआ सा, तरासा हुआ सा है, रज, मैल, कर्दम एवं कंकड़ रहित है। वह आभा, कांति एवं उद्योत - द्युतियुक्त है । चित्त में हर्षोत्पादक, दर्शनीय, सुंदर और आकर्षक है।
वह अपने दोनों नावों में दोनों ओर से दो दो पद्मवरवेदिकाओं एवं वनखण्डों द्वारा चारों और से संपरिवृत्त - घिरा हुआ है। वे पद्मवरवेदिकाएँ अर्द्धयोजन प्रमाण ऊँची तथा पाँच सौ धनुष प्रमाण चौड़ी हैं। इनकी लम्बाई पर्वत के सदृश ही हैं। इनका विस्तृत वर्णन अन्य आगमों के अनुरूप कथनीय है। वे वनखण्ड दो योजन से कुछ चौड़े हैं, लम्बाई में पद्मवरवेदिका के तुल्य हैं। वे कृष्ण वर्ण एवं कृष्ण प्रभा से युक्त हैं यावत् इनका विस्तृत वर्णन पूर्ववत् योजनीय है।
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वेयस्स णं पव्वयस्स पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं दो गुहाओ पण्णत्ताओउत्तरदाहिणाययाओ, पाईणपडीणवित्थिण्णाओ, पण्णासं जोयणाई आयामेणं, दुवास जोयणाई विक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, वइरामयकवा
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