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प्रथम वक्षस्कार - वन खण्ड
वन खण्ड
(५) . तीसे णं जगईए उप्पिं बाहिं पउमवरवेइयाए एत्थ णं महं एगे वणसंडे पण्णत्ते। देसूणाई दो जोयणाई विक्खंभेणं, जगईसमए परिक्खेवेणं वणसंडवण्णओ णेयव्वो।
शब्दार्थ - देसूणाई - कुछ कम।।
भावार्थ - उस प्राचीर के ऊपरी भाग में तथा पद्मवरवेदिका के बाहर एक विशाल वनखण्ड है। यह वनखण्ड दो योजन से कुछ कम विस्तार युक्त तथा प्राचीर के समान परिधि युक्त है। उसका वर्णन अन्य आगमों से ग्राह्य है।
तस्स णं वणसंडस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते। से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहिं, तणेहिं उवसोभिए, तं जहा - किण्हेहिं एवं वण्णो, गंधो, रसो, फासो, सद्दो, पुक्खरिणीओ, पव्वयगा, घरगा, मंडवगा, पुढविसिलावट्टया य णेयव्वा।
तत्थ णं बहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति, सयंति, चिटुंति, णिसीयंति, तुयटुंति, रमंति, ललंति, कीलंति, मेहंति, पुरापोराणाणं सुपरक्कंताणं, सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणफलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणा विहरंति।
तीसे णं जगईए उप्पिं अंतो पउमवरवेइयाए एत्थ णं एगे महं वणसंडे पण्णत्ते, देसूणाई दो जोयणाई विक्खंभेणं, वेइयासमएण परिक्खेवेणं, किण्हे जाव तणविहूणे णेयव्वे। - शब्दार्थ - जहाणामए - यथानामक-किसी, आलिंगपुक्खरेइ - मुरज या ढोलक का ऊपरी भाग, तणेहिं - तृणों द्वारा, किण्हेहिं - काले, घरगा - भवन, णेयव्वा - नेतव्य-लेने .
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