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प्रथम वक्षस्कार - जंबूद्वीप का परकोटा
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भावार्थ - हे भगवन्! जंबूद्वीप की स्थिति कहाँ है? वह कितना विशाल है? किस प्रकार संस्थित है? उसका आकार-प्रकार या स्वरूप किस प्रकार का है?
... भगवान् महावीर स्वामी ने उत्तर दिया - हे गौतम! यह जंबूद्वीप समस्त द्वीप-समुद्रों के भीतर है - समस्त तिर्यक् लोक के बीच में विद्यमान है। यह सबसे छोटा है, वर्तुलाकार है। तेल में तले हुए मालपुए अथवा रथ के पहिए जैसी गोलाई लिए हुए है। पद्यकर्णिका-कमल गट्टे जैसा गोल है। इसकी लंबाई-चौड़ाई एक लाख योजन परिमित है। इसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है।
जंबूद्वीप का परकोटा
से णं एगाए वइरामईए जगईए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। सा णं जगई अट्ट जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले बारस जोयणाई विक्खंभेणं, मज्झे अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं, उवरिं चत्तारि जोयणाई विखंभेणं, मूले वित्थिण्णा, मज्झे संक्खित्ता, उवरि तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिया, सव्ववइरामई, अच्छा, सण्हा, लण्हा, घट्ठा, मट्ठा, णीरया, णिम्मला, णिप्पंका, णिक्कंकडच्छाया, सप्पभा, सस्सिरीया, सउज्ज़ोया, पासाईया, दरिसणिज्जा, अभिरूवा, पडिरूवा। सा णं जगई एगेणं महंतगवक्खकडएणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता।
से णं गवक्खकडए अद्धजोयणं उई उच्चत्तेणं पंच धणुसयाई विक्खंभेणं, सव्वरयणामए, अच्छे (सण्हे, लण्हे, घट्टे, मढे, णीरए, णिम्मले, णिप्पंके, णिक्कंकडच्छाए, सप्पभे, समिरीए, सउज्जोए, पासाईए, दरिसणिज्जे, अभिरूवे) पडिरूवे।
तीसे णं जगईए उप्पिं बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगा पउमवरवेइया पण्णत्ता-अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाई विक्खंभेणं, जगईसमिया परिक्खेवेणं, सव्वरयणामई, अच्छा जाव पडिरूवा। तीसे णं पउमवरवेइयाए
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