Book Title: Jainendra Mahavrutti
Author(s): Devnandi Maharaj, Abhaynandi Maharaj, Shambhunath Tripathi, Mahadev Chaturvedi
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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जैनेन्द्र-व्याकरणम् यह पद्धति अनेक विद्वानोंने स्वीकार की है। इससे स्वयं ग्रन्थकर्ताके वचनोंसे भी जैनेन्द्र के कर्ता 'देवनन्दि' ठहरते हैं।
गणरत्नमहोदधिके कर्ता वर्धमान और हैम शब्दानुशासनके लघुन्यास बनानेवाले कनकप्रभ भी जैनेन्द व्याकरणके कर्ताका नाम देवनन्दि ही बतलाते हैं। अतः अब इस विषयमें किसी प्रकारका कोई सन्देह बाकी नहीं रह गया कि यह व्याकरण देवनन्दि या पूज्यपादका बनाया हुआ है।
दो तरहके सूत्र-पाठ जैनेन्द्र व्याकरणके मूल सूत्र-पाठ दो प्रकारके उपलब्ध हैं-एक तो वह जिसपर प्राचार्य अभयनन्दिकी 'महावृत्ति' तथा श्रुतकीर्तिकृत 'पञ्चवस्तु' नामकी प्रक्रिया है; और दूसरा वह जिसपर सोमदेवसूरिकृत 'शब्दार्णवचन्द्रिका' और गुणनन्दिकृत 'प्रक्रिया' है । पहले प्रकारके पाठमें लगभग ३००० और दूसरेमें लगभग ३८०० सूत्र हैं, अर्थात् एकसे दूसरेमें कोई ७०० सूत्र अधिक हैं, और जो ३००० सूत्र हैं वे भी दोनों में एकसे नहीं हैं । अर्थात् दूसरे सूत्रपाठमें पहले सूत्र-पाठके सैकड़ों सूत्र परिवर्तित और परिवर्धित भी किये गये हैं। पहले प्रकारका सूत्र-पाठ पाणिनीय सत्र-पाठके ढंगका है. वर्तमान दृष्टिसे वह कछ अपूर्ण सा जान पड़ता है और इसी लिए महावृत्तिमें बहुतसे वार्तिक तथा उपसंख्यान आदि बनाकर उसकी पूर्णता की गई दिखलाई देती है, जब कि दूसरा पाठ प्रायः पूर्ण-सा जान पड़ता है और इसी कारण उसको टीकाओं में वार्तिक श्रादि नहीं दिखलाई देते। दोनों पाठोंमें बहुत-सी संज्ञाएँ भी भिन्न प्रकारकी हैं।
___इन भिन्नताओंके होते हुए भी दोनों पाठोंमें समानताकी भी कमी नहीं है। दोनोंके अधिकांश सूत्र समान हैं, दोनों के प्रारंभका मंगलाचरण बिलकुल एक है और दोनोंके कर्ताओंका नाम भी देवनन्दि या पूज्यपाद लिखा हुआ मिलता है।
असली सूत्रपाठ अब प्रश्न यह है कि इन दोनोंमसे स्वयं देवनन्दि या पूज्यपादका बनाया हुया असली सूत्र-पाठ कौन-सा है ?
हमारे खयालमें श्राचार्य देवनन्दि या पूज्यपादका बनाया हुआ सूत्र-पाठ वही है जिसपर अभयनन्दिने अपनी महावृत्ति लिखी है। यह सूत्रपाठ उस समयतक तो ठीक समझा जाता रहा जब तक शाकटायन व्याकरण नहीं बना । शायद शाकटायनको भी जैनेन्द्र के होते हुए एक जुदा जैन व्याकरण बनानेको आवश्यकता इसीलिए महसूस हुई कि जैनेन्द्र अपूर्ण है, और इसलिए बिना वार्तिकों और उपसंख्यानों आदिके उससे काम नहीं चल सकता, परन्तु जब शाकटायन जैसा सर्वाङ्गपूर्ण व्याकरण बन चुका, तब जैनेन्द्र व्याकरणके भक्तोंको उसकी त्रुटियाँ खटकने लगी और उनमेंसे प्राचार्य गुणनन्दिने उसे सर्वांगपूर्ण बनानेका प्रयत्न किया । इस प्रयत्नका फल ही यह दूसरा सूत्र-पाठ है जिसपर सोमदेवकी शब्दार्णव-चन्द्रिका रची गई है। इस सूत्र पाठको बारीकीके साथ देखनेसे मालूम पड़ता है कि गुणनन्दिके समय तक व्याकरण-सिद्ध जितने प्रयोग होने लगे थे उन सबके सूत्र उसमें मौजूद हैं और इसलिए उसके टीकाकारोंको वार्तिक आदि बनानेके झंझटोंमें नहीं पड़ना पड़ा है। अभयनन्दिकी महावृत्तिके ऐसे बीसों वार्तिक हैं जिनके इस दूसरे पाठमैं सूत्र ही बना दिये गये हैं।
१. क-नीतिवाक्यामृतके मंगलाचरणमें सोमदेव कहते हैं
सोमं सोमसमाकारं सोमाभं सोमसंभवम् । सोमदेवं मुनि नत्वा नीतिवाक्यामृतं बवे ॥ ख-प्राचार्य अनन्तवीर्य लघीयस्त्रयकी वृत्तिके प्रारंभमें कहते हैं
जिनाधीश मुनिं चन्द्रमकलंक पुनः पुनः । अनन्तवीर्यमानौमि स्याद्वादन्यायनायकम् ॥ २. शालातुरीय शकटाङ्गज-चन्द्रगोमि-दिग्वस्त्र-भर्तृहरि-वामन-भोजमुख्याः ।
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