Book Title: Jainagmo Me Parmatmavad
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashanalay

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Page 13
________________ (१२) या उसके सम्बन्ध में सर्वथा मौन है, उन लोगों को भी इस पुस्तक में समुचित समाधान मिल जायेगा, इस पुस्तक के अध्ययन से उन को पता चल जायेगा कि जैनधर्म परमात्मा की सत्ता को सहर्ष स्वीकार करता है; और प्रामाणिकता के साथ परमात्मा के स्वरूप का प्रतिपादन करता है। इस तरह यह पुस्तक साहित्य जगत में महान उपकारक; हितावह प्रमाणित होगी; यह मैं दृढ़ता के साथ कह सकता हूं। परमश्रद्धेय आचार्य सम्राट श्री. के हम अाभारी हैं. जो शारीरिक दुर्बलता के रहते हुए भी साहित्य-सेवा के पुनीत कार्य को चाल, रख रहे हैं। अवतक आचार्य श्री लगभग ६० पुस्तके लिखें चुके हैं। नेत्र-ज्योति की मंदता तथा एक कम अंस्सी वर्षों की वयोवृद्ध अवस्था हो जाने पर आज भी श्रद्धेय प्राचार्य देव इस पुनीत साहित्य-कार्य से विश्राम नहीं ले रहे हैं । अवसर निकालकर इस कार्य को करते ही रहते हैं । प्रस्तुत पुस्तिका भो प्राचार्य-देव की इसी लग्न का सुपरिणाम हैं। प्राचार्य-देव की इस साहित्यप्रियता, कपालुता और दयालुता के लिए जितना भो उनका आभार प्रकट किया जाये उतनी हो कम है। जनस्थानक, लुधियाना कार्तिक शुक्ला १५ २०१६ . .. -ज्ञानमुनि

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