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उद्देशक
उद्देशक
अक्षर-परिमाण तक २८६३५ ४८५३४ ४५८५३
१९०७ ૨૨૨૨૬ ३२८०८ २१६१४ १६०३३ ३९८१२ ३३ (१२) १५९३६
३४ (१२) ८४१२
३५ (१२) २२४४३ ३६ (१२)
८०२७ ३७ (१२) १९८७१ ३८ (१२) १६३० ३६ (१२) १०६८ ४० (२१)
४१ ३६६२६ कुल १३८
अक्षर-परिमाण ४५१०३ ४४५५ ११० ६६४ १०२७ ४७६४ २३४४
३६३ ३०८४ ८६६४ ४१८१
२
१२४
१२४
१६
१३२ १३२ १३२ १३२ १३२ २३१
८७
२०
२१ (आठ वर्ग)८० २२ (छह वर्ग) ६० २३ (पाच वर्ग) ५० २४ २४
१३६ २७३४
३५१६ कुल ६१८२२४
१३६
भाषा और रचना-शैली
प्रस्तुत आगम की भाषा प्राकृत है । कहीं-कही शौरसेनी के प्रयोग भी मिलते हैं। इसमे देशी गब्दो का प्रयोग भी स्णन-स्थान पर मिलता है, जैसे-खत्त, डोगर (७।११७), टोल (७।११६), मग्गो (७।१५२), वोदि (३।११२), चिक्खल्ल (८।३५७)।
इनकी भापा बहुत सरल और सरस है । अनेक प्रकरण कथा-गली मे लिखे गए है । जीवनप्रमग, घटनाए बार ल्पक स्थान-स्थान पर उपलब्ध होते है। स्थान-स्थान पर कठिन विपयो को उदाहरणो द्वारा समझाया गया है।
प्रस्तुत आगम की रचना गद्य गली में हुई है। कही-कही स्वतन्त्र रूप से प्रश्नोत्तरो का क्रम चलता है और कहीं-कही किसी घटनाक्रम के बाद उनका क्रम चलता है। प्रतिपाद्य विपय का नकलन करने के लिए नग्रहणी गाथायो के रूप मे कुछ पद्य भाग भी मिलता है।
१. दीसवें शतक वे ; उद्देशक में पृथ्वी, अप और वायु-इन तीनो की उत्पत्ति का निरूपण है । एक
परम्परा के अनुसार यह एक उद्देशक है, दूसरी परम्परा के मत में ये तीन उद्देशक हैं। इस परम्परा के यनुसार प्रस्तुत भागम के कुल उद्देशक १९२५ हैं।