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उक्त सूचनाओ से प्रस्तुत आगम का महत्व जाना जा सकता है। वर्तमान विज्ञान की अनेक शाखाओ ने अनेक नए रहस्यो का उद्घाटन किया है । हम प्रस्तुत आगम की गहराइयो में जाते है तो हमे प्रतीत होता है कि इन रहस्यो का उद्घाटन ढाई हजार वर्ष पूर्व ही हो चुका था।
__ भगवान महावीर ने जीवो के छह निकाय वतलाए। उनमे त्रस निकाय के जीव प्रत्यक्ष सिद्ध है । वनस्पति निकाय के जीव अव विज्ञान द्वारा भी सम्मत है। पृथ्वी, पानी, अग्नि और वायु-इन चार निकायो के जीव विज्ञान द्वारा स्वीकृत नही हुए । भगवान् महावीर ने पृथ्वी आदि जीवो का केवल अस्तित्व ही नही वतलाया, उनका जीवनमान, आहार, श्वास, चैतन्य-विकास सज्ञाए आदि पर भी पर्याप्त प्रकाश डाला है । पृथ्वीकायिक जीवो का न्यूनतम जीवनकाल अन्तर्-, मुहूर्त का और उत्कृष्ट जीवनकाल वाईस हजार वर्ष का होता है । वे श्वास निश्चित क्रम मे नही लेते--कभी कम समय मे और कभी अधिक समय से लेते हैं। उनमे आहार की इच्छा होती है । वे प्रतिक्षण आहार लेते है। उनमें स्पर्शनेन्द्रिय का चैतन्य स्पष्ट होता है । चैतन्य की अन्य धाराये अस्पष्ट होती हैं।
मनुप्य जैसे श्वासकाल में प्राणवायु का ग्रहण करता है वैसे पृथ्वीकाय के जीव श्वासकाल मे केवल वायु को ही ग्रहण नहीं करते किन्तु पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति- इन सभी के पुद्गलो को ग्रहण करते हैं।
पृथ्वी की भाति पानी आदि के जीव भी श्वास लेते है, आहार आदि करते है । वर्तमान विज्ञान ने वनस्पति जीवो के विविध पक्षो का अध्ययन कर उनके रहस्यो को अनावृत किया है, किन्तु पथ्वी आदि के जीवो पर पर्याप्त शोध नही की । वनस्पति क्रोध और प्रेम प्रदर्शित करती है। प्रेमपूर्ण व्यवहार से वह प्रफुल्लित होती है और घृणापूर्ण व्यवहार से वह मुरझा जाती है । विज्ञान के ये परीक्षण हमे महावीर के इस सिद्धान्त की ओर ले जाते हैं कि वनस्पति मे दस सज्ञाए होती है। वे सज्ञाए निम्न प्रकार हैं-आहार सज्ञा, भय सज्ञा, मैथुन सज्ञा, परिग्रह सज्ञा, क्रोध सज्ञा, मान सज्ञा, माया सज्ञा, लोभ सज्ञा, ओघ सज्ञा और लोक सज्ञा। इन सज्ञाओ का अस्तित्व होने पर वनस्पति अस्पष्ट रूप मे वही व्यवहार करती है जो स्पष्ट रूप मे मनुष्य करता है।
प्रस्तुत विषय की चर्चा एक उदाहरण के रूप में की गई है। इसका प्रयोजन इस तथ्य की ओर इगित करना है कि इस आगम मे ऐसे सैकडो विषय प्रतिपादित है जो सामान्य बुद्धि द्वारा ग्राह्य नहीं हैं। उनमे से कुछ विषय विज्ञान की नई शोधो द्वारा अव ग्राह्य हो चुके हैं और अनेक विपयो को परीक्षण के लिए पूर्व-मान्यता के रूप मे स्वीकार किया जा सकता है । सूक्ष्म जीवो की गतिविधियो के प्रत्यक्षत प्रमाणित होने पर केवल जीव-शास्त्रीय सिद्धान्तो का ही विकास नही होता, किन्तु अहिंसा के सिद्धान्त को समझने का अवसर मिलता है और साथ-साथ सूक्ष्म जीवो के प्रति किए जाने वाले व्यवहार की समीक्षा का भी।
१ भगवई ११३२, पृ०६। २ भगवई ३३४।२५३,२५४, पृ० ४६४ ।