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भूमिका
प्रस्तुत आगम का नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति है । प्रश्नोत्तर की शैली मे लिखा जाने वाला ग्रन्थ व्याम्याप्रज्ञप्ति कहलाता है । समवायाग और नन्दी के अनुसार प्रस्तुत आगम मे छत्तीस हजार प्रश्नो का व्याकरण है' । तत्त्वार्यवात्तिक, पट्खण्डागम और कसायपाहुड के अनुसार प्रस्तुत आगम मे साठ हजार प्रश्नो का व्याकरण है ।
नामकरण
प्रस्तुत आगम का वर्तमान आकार अन्य आगमों की अपेक्षा अधिक विशाल है । इसमे विषयवस्तु की विविधता है । सम्भवत विश्वविद्या की कोई भी ऐसी शाखा नही होगी जिसकी इसमे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप मे चर्चा न हो । उक्त दृष्टिकोण से इस आगम के प्रति अत्यन्त श्रद्धा का भाव रहा । फलत इसके नाम के साथ 'भगवती' विशेपण जुड गया, जैसे - भगवती व्याख्याप्रज्ञप्ति | अनेक शताव्दियो पूर्व 'भगवती' विशेषण न रहकर स्वतन्त्र नाम हो गया । वर्तमान मे व्याख्याप्रज्ञप्ति की अपेक्षा 'भगवती' नाम अधिक प्रचलित है ।
विषय-वस्तु
प्रस्तुत आगम के विपय के सम्बन्ध मे अनेक सूचनाएं मिलती है । समवायाग मे बताया गया है कि अनेको देवों, राजो और राजर्पियो ने भगवान् से विविध प्रकार के प्रश्न पूछे और भगवान् ने विस्तार से उनका उत्तर दिया । इसमे स्वसमय, परसमय, जीव, अजीव, लोक और अलोक व्याख्यात है । आचार्य अकलक के अनुसार प्रस्तुत आगम में जीव है या नही है - इस प्रकार के अनेक प्रश्न निरूपित हैं । आचार्य वीरसेन के अनुसार प्रस्तुत आगम में प्रश्नोत्तरो के साथसाथ छियानवे हजार छिन्नच्छेद नयों से ज्ञापनीय शुभ और अशुभ का वर्णन है ।
१ समवाओ, सून ९३, नदी, सूत्र ८५ ।
२ तत्त्वार्थवार्तिक १२०, पट्खण्डागम १, पृ० १०१, कसायपाहुड १, पृ० १२५ ।
३ समवाओ, सून ९३ ।
४ तत्त्वार्थवार्तिक १।२०
५. जिस व्याख्या पद्धति मे प्रत्येक श्लोक और सूत्र की स्वतन्त्र, दूसरे श्लोको और सुनो से निरपेक्ष व्याख्या की जाती है उस व्याख्यापद्धति का नाम छिन्नच्छेद नय है ।
६ कसायपाहुड भाग १, पृ० १२५ ।