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अति प्रगति मे लिखा है
छ ॥ छ ॥
॥ छ ॥ ग्रथाग्र १५७७५ ॥ छ ॥ छ ॥ श्री ॥ छ || श्री कल्याणमस्तु ॥ शुभ भवतु ॥ छ ॥ श्री ॥ श्री ॥ छ ॥ छ ॥ प्रति मे अनेक स्थलो पर मस्कृत मे टिप्पण भी दिये हुए है ।
(स) भगवती सूत्र (त्रिपाठी)
केशर भगवती नाम से ख्यात यह प्रति हमारे सघीय पुस्तकालय की है । इसके ६०२ पत्र तथा १२०४ पृष्ठ हैं । पत्र के मध्य मे मूल पाठ तथा ऊपर नीचे वृत्ति लिखी गई है । यह प्रति सुन्दर और काफी शुद्ध है । किसी पाठक ने मुद्रित प्रति को प्रमाण मानकर स्थान-स्थान पर हरताल लगाकर इसे शुद्ध करने का प्रयत्न किया है। जहां ऐसा किया गया है वहां प्राय शुद्ध पाठ अशुह न गया है । इसके प्रत्येक पृष्ठ मे मूल पाठ की ४ मे १५ तक पक्तिया और प्रत्येक पक्ति मे ४५ से ५३ तक अक्षर हैं । प्रगस्ति मे लिखा है
श्री भगवती सूत्र सम्पूर्णं ॥ छ ॥ श्री विवाहपन्नत्ती पत्रम अंग सम्मत्त || शुभं भवतु | ग्रथाग्र १५६७५ उभयमीलने ग्र० ३४२६१ ॥ श्री ॥ लिषित यती डाहामल्ल श्री नागोरमध्ये स० १८४८ माह शु १५ ।
वृ (वृपा) मुद्रित
प्रकाशक - श्रीमती आगमोदय समिति ।
सहयोगानुभूति
जैन-परम्परा मे वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है । आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाए हो चुकी हैं। देवगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नही हुई | उनके वाचना-काल मे जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में वहुत ही अव्यवस्थित हो गए । उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी । आचार्यश्री तुलमी ने मुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयत्न भी किया था, परन्तु वह पूर्ण नही हो सका । अन्तत हम इसी निष्कर्ष पर पहुचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण, तटस्थदृष्टि-समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने-आप सामूहिक हो जाएगी । इसी निर्णय के आवार पर हमारा यह आगम-वाचना का कार्य प्रारम्भ हुआ ।
हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्यश्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है । हमारी इस प्रवृत्ति मे अव्यापन-कर्म के अनेक अंग हैं-पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन आदि-आदि। इन सभी प्रवृत्तियो मे आचार्यश्री का हमे सक्रिय योग, मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है । यही हमारा इस गुरुतर कार्य मे प्रवृत्त होने का शक्ति - बीज है ।