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वाला नहीं है। तीक्ष्ण और कटुक नहीं है। कसैला, खट्टा और मीठा नहीं है । वह न कठोर है, न सुकुमार है, न हल्का है, न भारी है, न शीत है, न उष्ण है, न स्निग्ध है, न रूक्ष है, न शरीरधारी है, न पुनर्जन्मा है, न आसक्त है, न स्त्री है, न पुरुष है, न नपुंसक है । वह ज्ञाता है, परिज्ञाता है, उसकी उपमा. नहीं है । वह अरूपी है, अवर्णनीय है, शब्दों द्वारा । • उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। . . . . . . . . .
मुक्तात्मा शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श स्वरूप भी नहीं है।
मूल पाठ.. ... .. .. * एक्कतीसं सिद्धाइगुणा पण्णत्ता, तंजहा-खोणे . आभिणिबोहिय-णाणावरणे, खींणे सुयणाणावरणे,.' खोणे ओहियणाणावरणे, खीणे मणपज्जवणाणावरणे
___ * एकत्रिंशत् सिद्धादिगुणाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा-क्षीणमाभिनिबोधिकज्ञानावरणं, क्षीणं श्रुतज्ञानावरणं, क्षीणमवधिज्ञानावरणं, क्षीणं मन:पर्यवज्ञानावरणं, क्षीणं केवलज्ञानावरण, क्षीणं : चक्षुर्दर्शनावरणं, क्षीणमचक्षुर्दर्शनावरण, क्षीणमवधिदर्शनावरणं, क्षीणं केवलदर्शनावरणं, क्षीणा निद्रा, क्षीणा निद्रानिद्रा; क्षीणा प्रचला, क्षीणा- प्रचलाप्रचला, क्षीणा स्त्यानद्धिः, क्षीणं मातावेदनीयं, “क्षीणमसातावेदनीयं, क्षीणं... दर्शनमोहनीयं, क्षीणं चारित्रमोहनीय, क्षीणं नैरयिकायुष्क क्षीणं तिर्यगा- . . युष्क, क्षीणं मनुष्यायुष्क, क्षीणं देवायुष्क, क्षीणमुच्चगोत्रं, क्षीणं नीचगोत्र, क्षी णं शुभनाम, क्षीणमशुभनाम, क्षीणो दानान्त-रायः, क्षीणो लाभान्तरायः, क्षीणो भोगान्तरायः, क्षीण उपभोगान्तरायः, क्षीणो वीर्यान्तरायः ।