Book Title: Jainagamo me Syadvada Author(s): Atmaramji Maharaj Publisher: Jain Shastramala Karyalaya Ludhiyana View full book textPage 8
________________ अनेकान्त-बादी की दृष्टि मे बोर्ड पर खींची हुई तीन इच- की रेखा मे अपेक्षाकृत वडापन तया अपेक्षाकृत ही रोदापन रहा हुआ है । यदि तीन इच की रेखा के नीचे पांच इच को रेखा खींच दी जाए तो वह (तीन इच की रेखा) पांच इच की, रेखा कीअपेक्षा छोटी और ऊपर दो इच की रेखा खींच दी जाए तो वह ऊपर की अपेक्षा बड़ी है.। एक ही रेखा में, छोटापन तथा बडापन-ये दोनो धर्म अपेक्षा से रह रहे हैं । स्याद्-वादी तीन इंच का रेखा को ' यह छोटी ही ह" अथवा "यह बडी ही है" इन शब्दों से नहीं कह सकेगा। __ ऊपर के विवे वन मे अभी तक स्थूल लौकिक उदाहरणों से स्याद्-वाद को समझाने का प्रयत्न किया गया है। अब जरा दार्शनिक उदाहरणों से स्याद्-वाद की उपादेयता को समझिए । __ जैन दशन कहता है कि प्रत्येक पदार्थ नित्य भी है. और अनित्य भी है। पाठक इस बात से अवश्य विस्मित होंगे और उन्हे सहसा यह ख्याल आएगा क जो पदार्थ नित्य है, वह भला अनित्य कैसे हो सकता है ।, और जो अनित्य है वह नित्य __ कैसे हो सकता है , परन्तु पाठक जरा गंभीर चिन्तन करें और देखें स्याद्-वाद इस समस्या को कैसे सुलझाता है कल्पना कीजिये-एक सोने का कुण्डत है। हम देखते है कि जिस सुवर्ण से वह बना है, उसी से और भी कटक आदि कई प्रकार के आभूषण बन सकते हैं। यदि उस कुण्डल को तोड़ कर हम उसी कुण्डल के सुवर्ण से कोई दूसरा भूषण तैयार करले तो उसे कदापि कुण्डल नहीं कहा जा सकेगा। उसी सुवर्ण के होते हुए भी उस कोPage Navigation
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