Book Title: Jainagamo me Syadvada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalaya Ludhiyana

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Page 9
________________ गुण्डल न कहने का कारण ? उनर स्पष्ट है, उस में अब कुण्डल का प्राकार नहीं रहा। इस सं यह स्वत सिह है कि कुण्डल कोई स्वतन्त्र द्रव्य नहीं है, बल्कि सुवर्ग का एक आकार विगप है। और यह प्राकार विशेष सुवण से मचा भिन्न नहीं है, उमी का एक रूप है। क्योकि भिन्न आकारों में परिवतित सुवा जब कुण्डल कटक प्रादि भिन्न नामों से सम्बाधित होता है तो उस स्थिति में श्राकार मवर्ग से मर्वया भिन कम हो सकता है? श्रव दयना है. कि. एन दाना बस्पों में विनाशी-स्वप कौनमा १ र नित्य मानना यह प्रत्यक्ष कि कुस्टल का याकार स्वरूप विनाशी है। क्योकि वा बनता है गोर विगडना पाले नहीं या बाद में भी नहीं रहेगा। गौर मुण्टल का जो दमग स्वरप सुवर्ग है, वह प्रविनाशी ,क्योरि उम का कभी नाश नहीं होता कुरा टल की निमिनि में पूर्व भी वा या, 'नोर उमके बनने पर भी वर, मौजूद है, जब रहाडल नट जायगा तब भी दामोजूद रहेगा। प्रत्येक दशा में सवर्ण सुवर्णी टेगा । वर्ग अपने आप में न्या- नव है, उसे बनना किराना नाती, एम विवेचन में यह प है कि टल का एक स्वरुप बिनानी है और मग 'दिनानी । फ बनना श्रीर नहाता, परतु दमन मेशा पना रदना है, निन्य राना। "पत 'अनेकान्त-वाद की प्रिो-रटल अपने 'प्रारष्टि से विनष्ट होने पं. पारस नित्य है और मूल वर्ग म्प में अविनाritra नित्य । म एमाली पदार्थ में परम्पर विरोधी टीमने वाले नित्यता र नियता नप धर्मों को सिरहने वाला लिन प्रान्तबाट।

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