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अन्त में मैं आशा करता हूं कि विद्वहन्द इस सग्रह से प्रावश्य लाभ उठाने का यत्न करेगा । यह अनमोल संग्रह है। एक पाठ टटोलने के लिये ग्रन्थ के सैंकड़ों पृष्ठों को इधर उधर उलटाना पड़ता है । यहा तो आप को प्राय सभी पाठ विना परिप्रम के एक स्थान पर ही मिल सकेगे, इसलिये इस संग्रह से अधिक से अधिक लाभ लेने का उद्योग करें ताकि जैनागमों के मार्मिक वेत्ता और प्राकृत भाषा के अद्वितीय विद्वान संग्राहक पूज्य श्री जी म० का कृत परिश्रम सफल हो सके ।
ॐ शान्ति , शान्ति , शान्ति ।
श्रावण कृष्णा ८, २००८, जैन स्थानक,
लुधियाना।
प्रार्थी
ज्ञान मुनि
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