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भगवान, - गौतम । प्रत्येक पदार्थ को अनेक दृष्टियों से देखा जाता है । यदि जीव को द्रव्यत्वेव (द्रव्य की अपेक्षा से) देखते है तो वे शाश्वत हैं, क्योंकि वे किसी भी अवस्था में रहें, किन्तु रहेंगे द्रव्यत्व - विशिष्ट ही; द्रव्यत्व से च्युत नहीं होंगे । यदि अवस्था परिवर्तन की दृष्टि से विचार करते हे तो वे अशाश्वत है । क्योंकि कभी तो वे मनुष्य शरीर को त्याग कर पशु- देहधारी बन जाते है और कभी पशुदेह को छोड कर देवताओं के ससार में जा उत्पन्न होते है- उन में अवस्थाओं का परिवर्तन होता रहता है, वे एक अवस्था मे नहीं रह पाते। इस प्रकार अनेक दृष्टियों से विचार करने पर जीव शाश्वत भी हैं तथा अशाश्वत भी है * ।
श्री
इस प्रकार के अनेक उदाहरण हैं जिन से श्री भगवती सूत्र, सूत्रकृताङ्ग, और श्री जीवाभिगम आदिक * सूत्र भरे पड़े है । जोकि स्वतन्त्र अध्ययन से सम्बन्ध रखते है ।
भते । किं सासया असासया ।
* प्र० - जीवा उ०- गोयमा । सिय सासया, सिय असासया ।
प्र० - सेकेण भते । एव वुच्चइ, - जीवा सिया सासया
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सिय सासया ।
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से ते सिय सासया ।
उ०- गोयमा । दव्वट्टयाए सासया, भावट्टयाए असासया गोयमा । एव वुचइ - जाव सिय सासया, (भगवती सूत्र ) * प्रस्तुत "जैनागमों मे स्याद् वाद" नामक पुस्तक मे श्री प्रज्ञापना सूत्र का पांचवा पद तथा श्री सूत्र कृत ग जी के द्वितीय श्रुतस्कन्ध का ५वा अध्याय भी सम्पूर्ण प्रकाशित है ताकि पाठक सुविधापूर्वक स्याद्वाद के स्वरूप को अवगत कर सके 1