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(१३) स्याद्-वाद के इस अमर मिद्वान्त को दार्शनिक संसार ने बडा मान दिया है, महात्मा गांधी जैसे ससार के महान पुरुपां ने भी इस की महान प्रशसा की है । पाश्चात्य विद्वान डा० थामस आदि ने भी कहा है कि- 'स्याद्-वाद का सिद्धान्त बडा ही गभीर है। यह वस्तु की भिन्न २ स्थितियो पर अच्छा प्रकाश डालता है।"
आज चारों ओर, जो पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय तथा धर्मिक विरोध दृष्टिगोचर हो रहे हैं तथा कलह ईर्ष्या, अनुदारता, साम्प्रदायिकता और संकीर्णता आदि दोषों ने मानवसमाज को खोखला बना डाला है, इन सब को शान्त करने का एकमात्र यदि कोई उपाय है तोवह बस स्याद्-वाद ही है। विश्व मे जब भी कभी शान्ति होगी तो वह स्वाद्-वाद से ही होगी यह वात नि सदेह सत्य है।
जिस स्याद्-वाद के सम्बन्ध मे उपर कुछ कहा गया है । उस का उद्गम स्थान है-~-जैनागम | जैनागमों मे स्याद्-वाद का बड़ी सुन्दरता से विवेचन मिलता है। विवेचन का ढग भी बडा निराला है । साधारण बुद्धि का धनी भी उसे पढ़ कर गद्गद् हो उठता है । जानकारी के लिये एक उदाहरण देता हूँ__भगवती सूत्र मे लिखा है भगवान महावीर राजगृह, नगरी में विराजमान थे। भगवान के प्रधान शिष्य अनगार गौतम भगवान से एक प्रश्न पूछते हैं । अनगार गौतम बोले
भदन्त | जीव शाश्वत (नित्य) हैं या अशाश्वत अनित्य) हैं, भगवान वोले-गौतम | जीव कथञ्चित् शाश्वत हैं, कथश्चित आशाश्वत ।
गौतम,~भदन्त । जीव कथञ्चित् शाश्वत है, तथा कथञ्चित् अशा अत हैं, यह कहने से अभिप्रेत क्या है ?