Book Title: Jainagamo me Syadvada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalaya Ludhiyana

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Page 11
________________ (६) अहिमा और सत्य के देवता भगवान महावीर स्वामी इसी युग मे ससार में अवतरित हुए थे,जो कि एक विशिष्ट वैद्य के रूप मे श्राधि, व्याधि और उपाधिरूप त्रिताप से सतप्त संसार को शान्ति का अमर सन्देश देने के लिये पधारे थे, उन्हो ने देश के रोग के निदान-मूलकारण को टटोला और अनेकान्तवाद के दिव्य ओपव से उस का उपचार कर उसे शान्त किया। ___भगवान महावीर ने संसार को अनेकान्त-वाद का अमर सन्देश दिया । प्रभु महावीर ने सिह-गर्जना से कहा--हे आग्र्यो परस्पर में लड़ने से कभी शान्ति नहीं होगी। पारस्परिक द्वन्द्वो से कभी किसी की उन्नति नहीं हो पाई है अत परस्पर स्नेह स्थापित करो और परस्पर मे भ्रातृभाव का पोपण करो। विवाद का मूल तुम्हारा एकान्तवादी होना है उसे छोड़ो और अनेकान्त-वादी वनो । किसी भी पदार्थ को एक दृष्टि से मत देखो, उस मे स्थित सभी प्रशों पर गंभीरता से विचार करो। ___ जो कहता है कि आत्मा नित्य ही है, वह भूलता है और जो कहता है कि आत्मा अनित्य ही है, वह भी भूल करता है । वास्तव में प्रात्मा नित्यानित्य है-नित्य भी है, अनित्य भी है। ससारी आत्मा कभी मनुष्यपर्याय (अवस्था) मे तथा कभी पशु आदि पर्यायों में यातायात करती रहती है,एक अवस्था में स्थिरनहीं रहती है, नट की भांति अनेकविध नेपथ्य धारण करती है, इस दृष्टि से यह आत्मा अनित्य है । तथा आत्मा किसी भी मनुष्य आदि पर्याय मे रहे किन्तु वह रहती आत्मा ही है, अनात्मा नहीं बन जाती, ज्ञान दर्शन की अनन्तता से शून्य नहीं हो पाती है, इस दृष्टि से आत्मा नित्य है। आत्मा को नित्यानित्य मानने पर

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