Book Title: Jainagam Pathmala
Author(s): Akhileshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra
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३०८
स्वाध्याय-सुधा इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगं वुच्छित्तिनयट्टयाए साइयं सपज्जवसियं, अव्वुच्छित्तिनयट्टयाए अणाइयं अपज्जवसियं । तं समासो चउन्विहं पण्णत्तं, तं जहादव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ तत्थ दवओ णं सम्मसुयं एगं पुरिसं पडुच्च
साइयं सपज्जवसियं, वहवे पुरिसे य पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं । खेत्तओ णं पंचभरहाई, पंचएरवयाइं पडुच्च
साइयं सपज्जवसियं, पंचमहाविदेहाइं पडुच्च--
अणाइयं अपज्जवसियं । कालओ णं उस्सपिणि ओसप्पिणिं च पडुच्च
साइयं सपज्जवसियं, नो उस्सपिणि नो ओसप्पिणि च पडुच्च
अणाइयं अपज्जवसियं । .. भावओ णं जे जया जिणपष्णत्ता भावा
आघविज्जति, पण्णविज्जति, परूविज्जति
दंसिज्जति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जति तया ते भावे पडुच्च साइयं सपज्जवसियं,
खाओवसमियं पुण भावं पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं । अहवा भवसिद्धियस्स सुयं साइयं सपज्जवसियं च,
अभवसिद्धियस्स सुयं अणाइयं अपज्जवसियं च ।

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