Book Title: Jainagam Pathmala
Author(s): Akhileshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 362
________________ ३५२ वीरत्युई पुट्टे णभे चिट्ठइ भूमिर्वाट्ठिए, जं सूरिया अणुपरियट्टयंति । से हेमवन्नं बहुनंदणे य, जंसि रई वेदयंति महिंदा ||११||. सहमहत्पगासे, विरायइ कंचणमवन्न । से पव्वए अणुत्तरे गिरिसु य पव्वदुग्गे, गिरीवरे से जलिए व भोमे ||१२|| सुद्धले से | अच्चिमाली ||१३|| महीए मज्झमि ठिए गिंदे, पन्नायते सूरिए एवं सिरीए उ स भूरिवन्ने, मणोरमे जोयइ सुदंसणस्सेव जसो गिरिस्स, पबुच्चई महतो पव्वयस्स । एतोव मे समणे नायपुत्त, जाइ - जसो दंसण - नाणसीले ||१४|| । गिरीवरे वा निसहाययाणं, रुपए व सेट्ठे वलयायताणं । तओवमे से जगभूइपन्ने मुणीण मज्झे तमुदाहु पन्न ||१५|| अणुत्तरं धम्ममुईरइत्ता, अणुत्तरं झाणवरं झियाइ । सुसुक्क सुक्कं अपगंडसुक्कं, संखिदुए गंतवदातसुक्कं ॥१६॥ अणुत्तरग्गं परमं महेसी, असेसकम्मं स विसोहइत्ता । सिद्धि गए साइमणंतपत्ते, नाणेण सीलेण य दंसणेण ||१७|| रुक्खेसु णाए जह सामली वा, जंसि रई वेदयंति सुवन्ना । वणेसु वा णंदणमाहु सेट्ठ, नाणेण सीलेण य भूतिपन्ते ||१८|| 119511 थणियं व सद्दाण अणुत्तरे उ, चन्दो व ताराण महाणुभावे । गंधेसु वा चन्दणमाहु सेट्ठ, एवं मुणीणं अपन्निमाहु ||१६|| 119811 जहा सयंभू उदहीण सेट्ठे, नागेसु वा धरणिदमाहु सेट्ठे । खोओदए वा रसवेजयंते, तवोवहाणे मुणीवेजयंते ॥२०॥ हत्थीसु एरावणमाहु नाए, सीहो मियाणं सलिलाण गंगा । पक्खीसु वा गरुले वेणुदेवो, निव्वाणवादीणिह नायपुत्ते ||२१|| जोहेसु नाए जह वीससेणे, पुष्फेसु वा जह अरविंदमाहु | खत्तीण सेट्ठे जह दंतवक्के, इसीण सेट्ठे तह वद्धमाणे ||२२||

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