Book Title: Jainagam Pathmala
Author(s): Akhileshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 356
________________ उवदाई-सुत्तस्स बाबीलगाहाओ कहिं पडिहया सिद्धा ? कहिं सिद्धा पइट्ठिया ?। .. कहिं वोदि चइत्ताणं, कत्थ गंतूण सिज्ज्ञई ।। १॥ .. अलोगे पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पइट्ठिया। इह वोदि चइत्ताणं, तत्थ गंतूण सिज्झई ।। २ ॥ . जं संठाणं तु इहं भवं चयंतस्स चरिमसमयंमि । आसी य पएसघणं तं संठाणं तहिं तस्स ।। ३ ॥ दीहं वा हस्सं वा, जं चरिमभवे हवेज्ज संठाणं । . तत्तो तिभागहीणं सिद्धाणोगाहणा भणिया ॥ ४ ॥ तिण्णि सया तेत्तीसा, धणुत्तिभागो य होइ वोद्धव्वा । एसा खलु सिद्धाणं, उनकोसोगाहणा भणिया ।। ५ ॥ चत्तारि य रयणीओ, रयणितिभागूणिया य वोद्धव्वा । .. एसा खलु सिद्धाणं, मज्झिमओगाहणा भणिया ॥ ६ ॥ एक्को य होइ रयणी, साहीया अंगुलाइ अट्ठ भवे। एसा खलु सिद्धाणं, जहण्णओगाहणा भणिया ।। ७ ।। ओगाहणाए सिद्धा भवत्तिभागेण होइ परिहीणा। संठाणमणित्थंथं जरामरणविप्पमुक्काणं ।। ८ ॥ . जत्थ य एगो सिद्धो तत्थ अणंता भवक्खयविमुक्का । अण्णोण्णसमोगाढा, पुट्ठा सवे य लोगते ॥६॥ फुसइ अणंते सिद्ध-सव्वपएसेहि णियमसो सिद्धा। ते वि असंखेज्जा गुणा देसपएसेहिं जे पुट्ठा ।। १०॥

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