Book Title: Jainagam Pathmala
Author(s): Akhileshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra
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नंदी-सुतं
इहलोइयपरलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परिआया,
सुयपरिग्गहा, तओवहाणाई, सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववास-सपडिवज्जणया
पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ,
भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाई, देवलोगमणाई सुकुलपच्चाइआओ, पुणवोहिलाभा, अंत किरियाओ य आघविज्जंति । उवासगदसाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ संखिज्जाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए सत्तमे अंगे,
एगे सुयवखंधे, पणवीसं अज्झयणा,
दस उद्देसणकाला, दस समुद्दे सणकाला,
संखेज्जाई पयसहस्साइं पयग्गेणं,
संखिज्जा अक्खरा, अगंतागमा, अनंतापज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा,
सासय-कड- निवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पन्नविज्जंति, परुविज्जंति
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दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवंदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विष्णाया एवं चरण-करण-परूवणा आधविज्जइ । से त्तं उवासगदसाओ ।

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