Book Title: Jainagam Pathmala
Author(s): Akhileshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra
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नंदी-सुत्तं
३२३
आघविज्जति, पण्णविज्जति, परूविज्जति दंसिज्जंति, निदसिज्जति, उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ । से तं पण्हावागरणाई।
सुत्तं ५५ से किं तं विवागसुयं ?
विवागसुए णं सुकडदुक्कडाणं कम्माणंफल विवागे आघविज्जइ। तत्थ णं दस दुह-विवागा, दस सुह-विवागा। से किं तं दुह-विवागा? दुह-विवागेसु णं दुहविवागाणंनगराई, उज्जाणाई, वणसंडाई, चेइयाइं, समोसरणाइं रायाणो अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इडिविसेसा; निरयगमणाई, संसारभव-पवंचा, दुहपरंपराओ, दुक्कुलपच्चायाइओ, दुल्लहवोहियत्तं आघविज्जइ । से त्तं दुहविवागा। से किं तं सुहविवागा? सुहविवागेसु णं सुह-विवागाणंनगराई, उज्जाणाई, वणसंडाई, चेइयाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइ, संलेहणाओ,

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