Book Title: Jain Shwetambar Tirth Antriksha Parshwanath
Author(s): Antriksha Parshwanath Sansthan Shirpur
Publisher: Antriksha Parshwanath Sansthan

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Page 109
________________ प्रभु तुमने रोग मिटाया है, श्रीपाल का कोढ हटाया है। मुज दुःख हरो करुणारसके भंडारा....सेवक. ४ तुम नामको नित्य समरता हूँ, करजोडके विनति करता हूँ।। जंबूको है प्रभु तेरा एक सहारा....सेवक० ५ -रचियता-मुनिराजधी जंबूविजयजी महाराज ॥ श्री अंतरिक्षपार्श्वनाथ स्तवन ॥ ॥ प्रभु हुं प्रेमे आव्यो रे, मारुं आयुष्य एळे जाय, प्रभु० ॥ ए चाल । ( राग माढ ) प्रभु हुं भावे आव्यो रे । मने संसारमा न सुहाय । प्रभु हुं भावे आष्यो रे । ए अंचली। श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ स्वामी । अरज करुं बारंवार । आ संसार समुद्र थी तारो । तारक बिरदना धार । प्र० १ ॥ अज्ञानता रूप तळियं जेहतुं । उंडु जेह अगाध । व्यसन शैल समुह छे जेमा । कषाय कलश ऊपाध । प्र० २ ।। तृष्णा पवन थकी ते भरीया । संकल्प वेला वधार। वडवानल कामदेव रुपी छ। स्नेह इंधन अपार । प्र० ३ ॥ रोग शोकादिक मच्छ बहुला । द्रोह गर्जना थाय । सोयात्रिक भव्य जीव घणेरा । संकटथी गभराय । प्र० ४ ॥ एह थकी हुँ अति उभग्यो छु । साहेब सुण दयाल । हंस कहे मुज जलदी तारो । जाणी पोतानो बाल । प्र० ५॥ (२) ( राग माढ ) ( थारी गाई रे अनादिनः निंद जरा टुक जोबो तो सही ) ए चाल । श्री अंतरिक्षपार्श्वनाथ प्रभुजी मावे भेटया रे । __ भावे भेटया भावे भेटघा भावे भेटया रे। . मुंबईथी प्रभुदर्शन करवा, मोह थयो मन जाण । मोहमयी कहेवामां आवे, देख्यं प्रत्यक्ष प्रमाण । प्रभुजी० १॥ (८८) Jain Education Ternational For Private & Personal Use Only wwwjainelibrary.org

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