Book Title: Jain Shwetambar Prachin Tirth Gangani Author(s): Vyavasthapak Committee Publisher: Vyavasthapak Committee View full book textPage 3
________________ प्राचीन जैन श्वेताम्बर तीर्थ श्री गांगांणी (राजस्थान) की प्राचीन मूर्तियों (पर) के शिला लेख: श्री आदीश्वर भगवान के सर्वधातु की प्रतिमा पर का लेख : ॐ नवसु शतेष्वब्दानां सप्ततृ ( त्रिं) शधि केवती तेषु । श्री वच्छलांगली भ्यां । ज्येष्टायभ्यिां । परम भक्त्या ॥ नाभेय जिन स्यैषा । प्रतिमाऽषाढ़ार्द्ध मास निष्पन्ना श्री म— तोरण कलिता । मोक्षार्थ कारिता ताभ्यां ॥ ज्येष्ठार्य पद प्रोप्ता द्वावपि - जिन धर्म वच्छलौ ख्यातौ । उद्योतन सूरे स्तौ ॥ शिष्य श्री वच्छपलदेवो ॥ * * सं० ६३७ आषाढार्द्ध अनुवाद: वीर संवत् ६३७ में ज्येष्ठार्य पदवी वाले श्री वच्छ और लांगली ने परम भक्ति से आधे श्राषाढ़ मास में मोक्ष के लिये तोरण में यह मूर्ति बनाई, उद्योतन सूरि के शिष्य ज्येष्ठार्य पदवी बाले श्री बच्छ और पल देव जिन धर्म में बत्सल प्रसिद्ध हैं || सं० ६३७ श्राधा अषाढ़ || श्री धर्मनाथ प्रभु के पाषाण की प्रतिमा पर का लेख सं० १६६४ वर्ष फाल्गुन मासे कृष्णा पक्षे ५ पंचमी तिथी गुरुवासरे वती वास्तव्य, धर्म्मनाथ बिंब कारितं प्रतष्टीतं च श्री विजयदानसूरि उपाध्याया जैसागर गणी, बीजीपण पास मूर्ति सं० १६५८ वर्षे महा सुद ५ दीने उजीनी वास्तव्यः प्रागबाट न्यातीय पारसनाथ बिंब || Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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