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॥ ढाल ॥ दुधेला रे नाम तलाब छे जेहनो।
तस्स पासेरे खोखर नाम के देहरा। तिण पुठेरे खणतां प्रकट यो भूहरो। परियागत रे जाणि निधान लाधो खरो ॥ ३ ॥
॥ त्रुटक ॥ लाधो स्वरो वलि मँहरो एक मांहे प्रतिमा अतिवली ।। ज्येष्ठ शुद्ध इग्यारस, सोलह बासटी, बिंब प्रगट या मनरली ॥ ४ ॥ : केटली प्रतिमा ? केनी वली ?, कौण भरावी भाव सू। ९ कोण नयरी कोण प्रतिष्टि ?, ते कहुं प्रस्ताव सं ॥५॥ .
३-महाराजा शूरसिंह के राजत्व वाल का समय वि० सं० १६५२ से
१६७६ तक का है। ४-धाणिका-इस शब्द से पाया जाता है कि अर्जुनपुरी में किसी जमामा
में घोणियां अधिक चलती हों और लोग उस नगरी को गांगांणी
के नाम से कहने लगे हों तो यह युक्ति युक्त भी हैं। १-दूघेला तालाब और खोखर नामक का मंदिर आज भी गांगांणी में विद्यमान है।
२-भू हारा-तलघर-मुसलम नों के अत्याचार के समय मूत्तियों का रक्षण इसी प्रकार किया जाता था कि उनको तलघर-भूहारों में रख दिया करते थे।
३-वि० सं० १६६२ ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के दिन मुंहारा में मूत्तिये मिली थीं और उनकी जांच करके ही कविवर ने सब हाले लिखा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com