Book Title: Jain Shwetambar Prachin Tirth Gangani
Author(s): Vyavasthapak Committee
Publisher: Vyavasthapak Committee

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Page 22
________________ [ १७ ] एक कार्यकारिणी समिति बनाई। इस तीर्थ की व्यवस्था सुचारू व स्थायी रूप से करना अति आवश्यक है किन्तु यह कार्य समस्त संघ के सहयोग से ही यह कार्यकारिणी समिति कर सकती है । मन्दिरजी में कमी सामान आदि का प्रबन्ध करना, यात्रियों के ठहरने के लिए व्यवस्था करना, मन्दिरजी के पास ही दूसरा जीर्ण मन्दिर है उसका जीर्णोद्वार करवाना आदि कार्य अति आवश्यक हैं । शास्त्रकार भगवान का कथन है कि नये मन्दिर बनाने से जो पुण्योपार्जन होता है उससे आठ गुणा अधिक प्राचीन मन्दिरों की मुव्यवस्था. जांद्वार आदि कराने में होता है । प्राचीन तीर्थ किसी एक व्यक्ति का नहीं वह तो समस्त संघ का है अतः आप इसके दर्शन कर विशाल मन्दिर की विशालता को स्वयं देखें । मन्दिरजी का वर्णन कलम से नहीं हो सकता यह तो स्वयं दर्शन करने से हृदयोल्लास से ही अनुभव किया जा सकता है । · इस मन्दिर के दर्शनार्थ आने वाले बन्धुओं को जोधपुर से दोपहर के ३ बजे भोपालगढ़ जाने वाली मोटर से जाना चाहिये । मोटर मन्दिरजी के पास ही खड़ी होती है। वहां से दिन के १२ बजे मोटर जोधपुर के लिए रवाना होती है। वहां ठहरने के लिए कुछ कोठड़िये बनी हुई हैं। अन्त में भारतवर्ष के समस्त तीर्थप्रेमी बन्धुओ से कार्यकारिणी की नम्र प्रार्थना है कि एक २२०० वर्ष प्राचीन तीर्थ में तन, मन, धन से सहयोग प्रदान कर जिनेश्वर देव के मन्दिर के प्रति अपने कर्तव्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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