Book Title: Jain Shwetambar Prachin Tirth Gangani
Author(s): Vyavasthapak Committee
Publisher: Vyavasthapak Committee

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Page 21
________________ [ १६ । मन्दिर का ५ वां जीर्णोद्वार सम्वत् १९८२ में गांगांणी निवासी श्रीमान घेवर चन्दजी छाजेड़ मेहता के प्रयत्न से अखिल भारतीय जैन श्री संघ की आर्थिक सहायता से हुआ था जिसकी रिपोर्ट [वि० संवत १६७६ से सं० १६६३ तक की ] सन् १९३७ ई. में प्रकाशित ह। चुकी है। समय ने पलटा खाया- शासन देव की कृपा हुई और सौभा. ग्य से तेरापंथी समुदाय में ३३ वर्ष दिक्षा पाल कर शास्त्रों के अध्यन से मूर्वि पूजा का महत्व समझ मुनि श्री सुपारसमलजी महाराज इस तीर्थ होते हुए जोधपुर शहर में पधारे और मूर्तिपूजक समुदाय में दीक्षा ग्रहण की। श्रापका नाम मुनि श्री प्रेमसुन्दर जी रखा गया । सम्वन् २०१३ का आपका चातुमार्स जोधपुर शहर में हुआ। मुनि श्री ने मौन एकादशी के दिन श्री तपागच्छ धर्मक्रिया भवन में इस प्राचीन तीर्थ पर प्रभावशाली प्रकाश डाला और महा सुद ६ के दिन गांगांणी मन्दिर के पाट उत्सव के उपलक्ष में अट्ठाई महोत्सव शान्ति स्नात्र महोत्सव व स्वामिवत्सल्य आदि के लिए सदुपदेश दिया। जोध. पुर श्री संघ ने सहर्ष स्वीकार किया और यह शुभ कार्य श्री संघ की आज्ञानुसार श्री जैन श्वेताम्बर सेवा समिति ने करना स्वीकार किया मिती महा वदि १३ से मुद ६ तक विविध प्रकार की पूजायें पढ़ाई गई, शान्ति स्नात्र वो स्वामिवत्सल्य ब ध्वजारोहण हुआ जिसमें हजारों तीर्थ प्रेमी बन्धुओं ने लाभ लिया। उपरोक्त मैले के शुभ दिन पर जोधपुर, बापडी, दइकडा, बुचेटी भोपालगढ आदि के श्रावकों ने इस तीर्थ की भावी उन्नति के लिए Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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