Book Title: Jain Shwetambar Prachin Tirth Gangani
Author(s): Vyavasthapak Committee
Publisher: Vyavasthapak Committee

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Page 19
________________ अति हर्ष का विषय था जब इस प्राचीन मंदिर का. पाट सवें एवं ध्वजाभिषेक प्रति वर्ष महा सुद ६ को होता था और जैन एवम् जैनेतर हजारों की संख्या में इस शुभ दिन पर यहां एकत्रित होते थे । खेद है कि कुछ वर्षों से यह उत्सव बन्द हो गया है । मन्दिरजी की पूजा की व्यवस्था इसी गांव के निवासी श्रीयुत घेवरचन्दजी साहब के पुत्र श्रीयुत्त फकीरचन्दजी साहब करते रहे हैं । (आज कल दारजीलिंग जिला का अधिकारी गांव में रहते हैं) __ इधर हाल ही में दिल्ली में होने वाले जैन गोष्टी में इस मन्दिर ने एक अद्वितीय स्थान प्राप्त किया था जिसका विवरण "धर्मयुग” वर्ष ७ अङ्क ४८ रविवार २५-११-५६ में वो दैनिक नवभारत टाइम्स वो गौरखपुर के प्रकाशित “ कल्याण " तीर्थोक में दिया हुआ है। श्री समय सुन्दरजी गणी कृत स्तवन से ऐसा मालूम होता है कि इस मन्दिर में किसी समय में ६५ प्रतिमाएं थी। समय परिवर्तन ------------- १-विक्रम की सतरहवीं शताब्दी में गाँगांणी अच्छा आबाद शहर होगा । और इस तीर्थ का यश एवं महिमा भी दूर दूर फैल गई होंगी तभी तो कविवर की विद्यमानता में ग्राम के संघ इस तीर्थ की यात्रार्थ आते थे। २-इतना ही क्यों पर यहाँ के अधिष्ठायिक का परवा भी खूब जोर का था कि जैनों के अतिरिक्त अन्य अठारह वर्ण भी गांगाणी तीर्थ की यात्रा निमित्त आते है। ३-४--इस मन्दिर की एक सो मुनि प्राचीन दूसरी वह भी सफेद सुवर्ण की बनी होने से कवि श्री ने बिंब को जूना कहा है और उस समय ये मूर्तियाँ भू हारा मे मिलने पर मन्दिर में विराजमान की थी अतएवं जिर्णोद्धार के समय खूब जमघट रहता होगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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