Book Title: Jain Shwetambar Prachin Tirth Gangani
Author(s): Vyavasthapak Committee
Publisher: Vyavasthapak Committee

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Page 17
________________ । १२ । ॥ ढाल चौथी ।। ( तर्ज - वीर सुणो मोरो विनति ) मारो मन तीर्थ मोहियो, मइ भेट या हो पद्म प्रभु पास । मूल नायक बहु अति भला, प्रणमतो हो पूरे मननी आस ॥ १ ॥ १-भगवान् महावीर अपने दीक्षा के सातवे वर्ष मुडस्थल में पदार्पण किया उस समय राजा नन्दीवर्धन आपके दर्शनार्थं आया जिसकी स्मृति में राजा ने एक मन्दिर बनाया उसके खण्डहर आज भी मिल सकते हैं । २-महाराजा उदाई की पट्टरानी प्रभावती के अन्तैवर गृह में भगवान् महावीर की मूत्ति थी राजा बीना बजाता और रानी त्रिकाल पूजा कर नृत्य करती थी। ३-कच्छ भद्रेश्वर के मन्दिर की प्रतिष्ठा वीरात् २३ वर्ष सौधर्माचार्य के कर कमलों से हुई वह मूर्ति और इसका शिला लेख आज भी विद्यमान है। . ४-नागोर के बड़ा मन्दिर में बहुत सी सर्वधातुमय मूर्तियां हैं। जिसमें एक मूर्ति पर वी. सं. ३२ का शिलालेख खुदा हुआ आज भी दृष्टिगोचर होता है। ५-आचार्य रत्नप्रभसूरि के कर कमलों से वी. सं. ७० वर्षों में उपकेश पुर में कराई प्रतिष्ठा का मन्दिर मूर्ति इस समय भी विद्यमान है। ६-कोरंटा नगर का महावीर मन्दिर भी आचार्य रलप्रभसूरि के समय का है। ७-महामेधवाहन महाराजा खारबेल का विशाद शिलालेख इन सब की पुष्टी कर रहा है क्योंकि इम शिलालेख और हेमवंत पट्टावलि से पाया जाता है कि भगवान महावीर के समय सम्राट श्रेणी ने खण्डगिरी पर भगवान ऋषभ देव का मन्दिर बनवाया था । ___८-मथुरा के कंकालि टीला से कई मूर्तियां स्तुप मिला है वह भी इतना ही प्राचीन है कि जितना खारबेल का शिलालेख है इत्यादि। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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