Book Title: Jain Shwetambar Prachin Tirth Gangani
Author(s): Vyavasthapak Committee
Publisher: Vyavasthapak Committee

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Page 18
________________ संघावे ठाम ठामना, वलि आवे हो यहां वर्ण अठार । यात्रा करे जिनवरतणी, तिणे प्रगट यो हो ये तीर्थ सार ॥२॥ जूनो बिंब तीर्थ नवो, जंगी प्रगट यो हा मारवाड़ ममार । गांगांणी अरजुन पुरी, नाम जाणे ही सगलो संसार ॥ ३ ॥ श्री पद्मप्रभ ने पासजी, ए बहु मूर्ति हो सकलाप । मुपना दिखावे समरतां, तसु वाध्यो हो यशः तेज प्रताप ॥४॥ महावीर भौहग तणी, ए प्रगटी हो मूर्ति अतिसार । जिन प्रतिमा जिन सारस्वी, काई शङ्का हो मत करजो लगार ॥५॥ संवन सोला बासटी सुमड, यात्रा किधी हो मइ महा मझार । जम्म सफल थयो म्हारो, दिव मुझने हो स्वामि पार उतार ॥ ६ ॥ ॥ कलम ॥ हम श्री पद्मप्रभ प्रभु पास स्वाभि, पुन्य सुगुरु प्रसादए। . मुलगी अरजुन पुरी नगरी, बर्द्धमान सुप्रसादए । गच्छराज श्राजिनचद सरि, गुरु जिन हंस सूरीश्वरो । गणिसावलचंद विनय वाचक, समय सुन्दर सुख करो ॥ १॥ ___E-वाम कर स्थानकवासी समाज के अग्रगण्य नेता साधु सन्त बालजी ने धर्म प्राण लोकागाह को लेखमाला में सम्राट अशोक के समय तथा साधु मणिलालजी ने वीर की दूसरी शताब्दी में मूर्तिपूजा स्वीकार करली है। इसी प्रकार चन्द्रगुप्त और भद्रबाहु आचार्य के समय की मूर्ति कविवर के ममय मिली हो तो इसमें संदेह ही क्या हो सकता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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