Book Title: Jain Shwetambar Prachin Tirth Gangani
Author(s): Vyavasthapak Committee
Publisher: Vyavasthapak Committee

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Page 13
________________ [ ] ॥ ढाल || इन्द्र ब्रह्मारे ईश्वर रूप चक्र श्वरी। एक अंबिकारे कालिका अर्ध नाटेश्वरी ॥ विनायक रे योगणि शासन देवता। पासे रहेरे श्री जिनवर पाय सेवता ॥ ६ ॥ ॥ त्रुटक ॥ संवता प्रतिमा जिण करावी, पांच ते पृथ्वी पालए। चंद्रगुप्त बिन्दुसार अशोक, संप्रति पुत्र कुणालए ॥ १० ॥ कनसार जोड़ा धूप धाणो, घंटा शंक भ्रगारए । निसिटा मोटा तद कालना, वली ते परकर सारए ॥ ११ ॥ ॥ ढाल दूसरी ॥ * दोहा * मूल नायक प्रतिमा वाली, परिकर अति अभिराम । सुन्दर रूप सुहामणि, श्री पद्मप्रभु तसु नाम ॥ १ ॥ १-"वीतरागनी उगणीस प्रतिमा वली ए बीजी सुन्दरू" बीजी से मतलब १६ मूर्तियां अन्य देवो की ही है। और कई नाम तो आपने लिख ही दिये हैं जैसे इन्द्र, ब्रह्मा, ईश्वर, चक्रे श्वरी, अंबिका, अर्ध नाटेश्वरी, विनायक, योगनी, और शासन देवता इसमें शासन देव तथा योगिनी की अधिक संख्या होने से सब को १६ लिखे हैं जिससे ६५ की संख्या पूर्ण हो जाती है । २-मूल नायक श्री पद्मप्रभ की प्रतिमा कराने वाले का नाम कषिवर ने सम्राट सम्प्रति सूचित किया है और चन्द्रगुप्त, बिन्दुसार, अशोक और कुणाल का नाम संप्रति की वंश परम्परा बतलाने को दिया है । संप्रति को कुणाल का पुत्र बतलाते हुए कविता की संकलना के कारण "संप्रति पुत्र, कुणालए" कहा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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