Book Title: Jain Shwetambar Prachin Tirth Gangani Author(s): Vyavasthapak Committee Publisher: Vyavasthapak Committee View full book textPage 9
________________ [ ४ बढाते थे । काल चक्र के कुप्रभाव से आज वहां एक भी जैनी निवास नहीं करता है । यह असत्य नहीं है कि प्राणियों के श्रात्म कल्याण के साधन दो हैं-जैनागम व जैन मन्दिर । अतः इस नगरी में जैनिगे की अधिक आबादी होने की दशा में एक भीमकाय, भारत की प्राचीन शिल्पकला का द्योतक, जमीन से ७२ फोट चा दुमंजिला मन्दिर हो तो कोई आश्चर्य नहीं। यह मन्दिर विक्रम से पूर्व २ शताब्दि में सम्राट सम्पति ने बनवाया था और इसकी प्रतिष्ठा सुप्रसिद्ध जैनाचार्य श्री सुहुस्ति सूरिजी के कर कमलों से कराई गई थी। मन्दिरजी के प्राचीनता के लिये निम्न प्रमाण हैं: (१) सम्वत् १६६२ में प्रकाण्ड विद्वान् एवम् प्रसिद्ध कविवर गणी श्री समय सुन्दर जी ने इस प्राचीन तीर्थ की यात्रा की थी और एक स्तवन रचा था जिसमें उन्होंने इस तीर्थ की प्राचीनता का उल्लेख किया था । पाठकों के अवलोकनार्थ यह स्तवन आगे मुद्रित किया जाता है। (२) तपागच्छ को प्राचीन पट्टावली जो जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेन्स हेरल्ड पत्र के पृष्ट ३३५ में मुद्रित हो चुकी है, उसमें लिखा है : " सम्प्रति उत्तर दिशामां मरूधरमां गांगांणी नगरें श्री पद्म प्रभू स्वामिनो प्रासाद बिम्ब निपजाव्यो" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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