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६.
७.
जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास श्रीसंडेकीयगच्छे श्रीयशोभद्रसूरिसंताने तत्पट्टे श्रीशालिसूरिः, तत्पट्टे श्रीसुमतिसूरिः तत्पट्टे श्रीशान्तिसूरयः । तदन्वये श्रीशान्तिसूरिविजयराज्ये वा० श्रीनइ (य) कुंजरद्वितीयशिष्यमु० हंसराज : (जेन) श्री भोजचरित्रं सम्पूर्णं कृतम् ॥
Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts Ed. by A. P. Shah, Part Punyavijayjis Collection 4936, P. 313.
मू. अन्तः - इति षट्पञ्चाशिकाटीका समाप्ता ॥
श्रीबृहत् श्रीश्रीसंडेरगच्छे उपाध्या [य] श्रीधर्म्मरत्नशिष्यवा० श्रीसि (स) हजसुन्दरउपाध्या [य] श्रीजि [ज] यतिलक - पं० श्रीभावसुन्दरउपाध्या [य] श्रीक्षमामूर्ति उपाध्या [य] श्री क्षमासुन्दरविजयराज्ये ग० श्रीसंयमवल्लभ - वा० श्री आणन्दचन्द्र - वा० श्री न्या [ ज्ञा] नसागर मु० सामलमु० देषा - जीवन्त - डङ्गासमस्तसाधुयुते उपाध्या [य] श्रीक्षमासुन्दर - शिष्य चेलानेतालिखितं, सांप्रतं राणाश्रीउदयसङ्घराज्ये उटालाग्रामे लिखितम् ।
Shah, Ibid, Part III, No. 7261, P. 447.
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८.
Ibid, Part I, No. 3269, P. 182.
९.
पूरनचन्द नाहर, जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १९४८.
१०. यशोभद्रसूरि के सम्बन्ध में विस्तृत विवरण के लिए द्रष्यव्य
'वीरवंशावली'
(विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह [संपा० मुनि जिनविजय ] में प्रकाशित); ऐतिहासिकराससंग्रह, भाग २; जैनपरम्परानोइतिहास, भाग १, ( त्रिपुटी महाराज)
आदि.
११. विजयधर्मसूरि सम्पा० प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक १
१२. मुनि विशालविजय - सम्पा० राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ३.
१३. जैनसत्यप्रकाश, वर्ष- २, पृ०५४३, क्रमाङ्क ४१.
१४. मुनि जिनविजय, संपा० प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २२३. १५. मुनि विशालविजय - सांडेराव, पृ० १५.
१६. विजयधर्मसूरि, संग्राहक एवं सम्पादक - प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ५.
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१७. पूरनचन्द नाहर, जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १६८७;
१८. जे. पी. अमीन, खंभातनुं जैन मूर्ति विधान, पृ० ३२, लेखांक २. नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८३९.
१९.
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