Book Title: Jain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Author(s): Shivprasad
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

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Page 664
________________ १३३२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास (वि० सं० १४५८ - १४७९) प्रतिमालेख मतिसागरसूरि सर्वसुन्दरसूरि (वि० सं० १५१० में हंसराजवत्सराजचौपाई अपरनाम कथासंग्रह के रचनाकार) Jain Education International विद्यासागरसूरि T गुणसुन्दरसूरि (वि० सं० १४७६- १४८८) प्रतिमालेख (वि० सं० १४९७ - १५२९) प्रतिमालेख गुणनिधानसूरि (वि० सं० १५२९ - १५३६) प्रतिमालेख गुणसागरसूरि (वि० सं० १५४३ - १५४६) प्रतिमालेख लक्ष्मीसागरसूरि ( वि० सं० १५४९ - १५७२) प्रतिमालेख वि० सं० की १६वीं शती के अन्तिम चरण से मलधारगच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों की विरलता इस गच्छ के अनुयायियों की घटती हुई संख्या का परिचायक है । वि० सं० की १७वीं शती के इस गच्छ से सम्बद्ध मात्र दो साक्ष्य मिलते हैं। इनमें प्रथम है सिन्दूरप्रकरवृत्ति", जो हर्षपुरीयगच्छ के For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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