Book Title: Jain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Author(s): Shivprasad
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

View full book text
Previous | Next

Page 668
________________ १३३६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास विशेषावश्यकभाष्यबृहद्वृत्ति : यह हेमचन्द्रसूरि की बृहत्तम कृति है। इसके अन्तर्गत २८००० श्लोक हैं । इसमें विशेषावश्यकभाष्य के विषयों का सरल एवं सुबोध रूप से प्रतिपादन किया गया है। इस टीका के कारण विशेषावश्यकभाष्य के पठनपाठन में अत्यधिक वृद्धि हुई । इसके अन्त में दी गयी प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि यह वि० सं० ११७५/ई० सन् १११९ में पूर्ण की गयी। विजयसिंहसूरि __आप हेमचन्द्रसूरि के शिष्य थे । श्रीचन्द्रसूरि कृति मुनिसुव्रतस्वामिचरित (रचनाकाल वि० सं० ११९३/ई० सन् ११३७), लक्ष्मणगणि विरचित सुपासनाहचरिय (रचनाकाल वि० सं० १११९/ई० सन् ११४३), नरचन्द्रसूरि द्वारा रचित कथारत्नसागर एवं देवप्रभसूरि कृत पाण्डवचरितमहाकाव्य की प्रशस्तियों में इनका सादर उल्लेख है । कृष्णर्षिगच्छीय जयसिंहसूरि विरचित धर्मोपदेशमाला (रचनाकाल वि० सं० ९१५/ई० सन् ८५९) पर इन्होंने वि० सं० ११९१/सन् ११३५ में १४४७१ श्लोक परिमाण संस्कृत भाषा में वृत्ति की रचना की । इसके अन्तर्गत कथाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। श्रीचन्द्रसूरि - आप विजयसिंहसूरि के लघु गुरुभ्राता और मलधारी हेमचन्द्रसूरि के पट्टधर थे। जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है इन्हों ने वि० सं० ११९३/ई० सन् ११३७ में प्राकृत भाषा में मुनिसुव्रतस्वामिचरित की रचना की । यह प्राकृत भाषा में उक्त तीर्थङ्कर पर लिखी गयी एकमात्र कृति है। इसकी प्रशस्ति के अन्तर्गत ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा का अत्यन्त विस्तार से साथ परिचय दिया है। इनकी दूसरी महत्त्वपूर्ण कृति है संग्रहणीरत्नसूत्र जिस पर इनके शिष्य देवभद्रसूरि ने साढ़े तीन हजार श्लोक प्रमाण वृत्ति की रचना की। वि० सं० १२२२/ई० सन् ११६६ में इन्होंने अपने गुरु की कृति आवश्यकप्रदेशव्याख्या पर टिप्पण की रचना की। लघुक्षेत्रसमास भी इन्हीं की कृति है।२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698