Book Title: Jain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Author(s): Shivprasad
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

View full book text
Previous | Next

Page 675
________________ हारीजगच्छ का संक्षिप्त इतिहास प्राक्मध्यकाल और मध्यकाल में निर्ग्रन्थ परम्परा के अल्पचेल (श्वेताम्बर) आमान्य के अन्तर्गत विभिन्न नगरों या ग्रामों से उद्भूत अल्पजीवी गच्छों में हारीजगच्छ भी एक है । पाटण और शंखेश्वर के मध्य महेसाणा जिले में जिला मुख्यालय से ६७ किलोमीटर दूर पश्चिम में हारीज नामक एक स्थान है ।' यह गच्छ सम्भवतः वहीं से अस्तित्व में आया प्रतीत होता है । इस गच्छ से सम्बद्ध केवल एक साहित्यिक साक्ष्य आज मिलता है वह है कातंत्रव्याकरण पर दुर्गसिंह द्वारा प्रणीत वृत्ति पर वि० सं० १५५६ / ईस्वी सन् १५०० में रची गयी अवचूर्णि; जो आज श्री विजयसूरीश्वर ज्ञानमन्दिर, राधनपुर में संरक्षित है । श्री अमृतलाल मगनलाल शाह ने उक्त कृति की प्रशस्ति का पाठ दिया है, जो सुधारों के साथ निम्नानुसार है : कुछ सं. १५ आषाढ़ादि ५६ वर्षे । शाके १४२१ प्रवर्तमाने फाल्गुनमासे शुक्ल पक्षे । तृतीयातिथौ । रविदिने । मीनराशिस्थितचन्द्रे ॥ तद्दिने || श्री भानुराज्ञि राज्यं कुर्वाणे अह । श्री इलदुर्गे ॥ श्री श्री ॥ हारीजगच्छे | पूज्ये श्री सिंघ (ह) दत्तसूरि तच्छिष्येण उदयसागरेण अवचूर्णिः कृता । जयकलशेन सूत्रमलिखितम् ॥ सूत्रद्वयस्वादि । अवचूर्णि जयकुशलेनेव कृता । शुभमस्तु । लेखक पाठकयोः । उक्त प्रशस्ति से स्पष्ट है कि इसमें हारीजगच्छ के सिंहदत्तसूरि के शिष्य उदयसागर का अवचूर्णि के रचनाकार के रूप में नाम मिलता है । लिपिकार के रूप इस प्रशस्ति में उल्लिखित जयकलश एवं जयकुशल भी इसी गच्छ से सम्बद्ध प्रतीत होते हैं । इसके अतिरिक्त उक्त प्रशस्ति से 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698