Book Title: Jain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Author(s): Shivprasad
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

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Page 684
________________ १३५२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उक्त प्रतिमालेखीय साक्ष्यों में से केवल द्वितीय लेख में (वि० सं० १३३०) प्रतिमाप्रतिष्ठापक मुनि ने अपने गुरु का नाम गुणभद्रसूरि बतलाया है, किन्तु अपना नाम नहीं बतलाया है। इसके विपरीत अन्य सभी लेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक मुनिजनों का नाम मिलता है किन्तु उनके गुरु का नामोल्लेख नहीं है, अत: ऐसी स्थिति में इन मुनिजनों के परस्पर सम्बन्धों के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं हो पाती है। जैसा कि इस निबन्ध के प्रारम्भ में हम देख चुके हैं कातंत्रव्याकरण पर दुर्गसिंह द्वारा रची गयी वृत्ति पर रची गयी अवचूर्णि की प्रशस्ति में रचनाकार उदयसागरसूरि ने अपने गुरु सिंहदत्तसूरि का नाम दिया है। उपरोक्त साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों शीलभद्रसूरि 'प्रथम', महेन्द्रसूरि, सिंहदत्तसूरि 'प्रथम', शीलभद्रसूरि 'द्वितीय', महेश्वरसूरि, सिंहदत्तसूरि 'द्वितीय', शीलभद्रसूरि 'तृतीय' आदि के नाम तो ज्ञात हो जाते हैं, परन्तु वहाँ इनके गुरु का नाम न होने से इनके परस्पर सम्बन्धों के बारे में हमें कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती, फिर भी इन्हें कालक्रमानुसार निम्नलिखित क्रम में रखा जा सकता है : ? गुणभद्रसूरि शीलभद्रसूरि (वि० सं० १३३०-४३) 'प्रथम' प्रतिमालेख गुणभद्रसूरिशिष्य (वि० सं० १३३०) प्रतिमालेख श्रीसूरि I (वि० सं० १३५५) प्रतिमालेख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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