Book Title: Jain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Author(s): Shivprasad
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

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Page 662
________________ १३३० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास देवानन्दसूरि नेमिचन्द्रसूरि यशोभद्रसूरि देवप्रभसूरि नरचन्द्रसूरि माणिक्यचन्द्र नरेन्द्रप्रभ रत्नप्रभ प्रभानन्द पद्मदेव ग्रन्थप्रशस्तियों से जहाँ श्रीचन्द्रसूरि के केवल दो शिष्यों मुनिचन्द्रसूरि और देवप्रभसूरि के बारे में ही जानकारी प्राप्त हो पाती है, वहीं इस गुर्वावली से ज्ञात होता है कि उनके अतिरिक्त श्रीचन्द्रसूरि के हरिभद्रसूरि, सिद्धसूरि, मानदेवसूरि आदि शिष्य भी थे । यही बात मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य नेमिचन्द्रसूरि के बारे में भी कही जा सकती है। इसी प्रकार इस गुर्वावली में उल्लिखित नरचन्द्रसूरि के सभी शिष्यों के नाम साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों से ज्ञात हो जाते हैं । वस्तुतः इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से यह गुर्वावली अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। जैसा कि पीछे हम देख चुके है इस गच्छ से सम्बद्ध १५वीं-१६वीं शती की जिनप्रतिमाओं की संख्या पूर्व की शताब्दियों की अपेक्षा अधिक है। इन पर उत्कीर्ण लेखों से इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों के नाम ज्ञात होते है, तथापि उनमें से कुछ के पूर्वापर सम्बन्ध ही निश्चित हो पाते हैं। इनका विवरण इस प्रकार है: १. मतिसागरसूरि (वि० सं० १४५८-१४७९) . ३ प्रतिमालेख २. मतिसागरसूरि के पट्टधर विद्यासागरसूरि ७ प्रतिमालेख (वि० सं० १४७६-१४८८) ३. विद्यासागरसूरि के पट्टधर गुणसुन्दरसूरि ४३ प्रतिमालेख (वि० सं० १४९७-१५२९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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