Book Title: Jain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Author(s): Shivprasad
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

View full book text
Previous | Next

Page 665
________________ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ गुणनिधानसूरि के शिष्य गुणकीतिसूरि द्वारा वि० सं० १६६७/ईस्वी सन् १६११ में रची गयी है। इसी प्रकार वि० सं० १६९९ के प्रतिमालेख में इस गच्छ के महिमासागरसूरि के शिष्य कल्याणराजसूरि का प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख मिलता है । यह इस गच्छ का उल्लेख करनेवाला अन्तिम उपलब्ध साक्ष्य है । यद्यपि इनसे विक्रम सम्वत् की १७वीं शती के अन्त तक हर्षपुरीयगच्छ का स्वतंत्र अस्तित्व सिद्ध होता है, तथापि वह अपने पूर्व गौरवमय स्थिति से च्युत हो चुका था और वि० सं० की १८वीं शती से इस गच्छ के अनुयायी ज्ञातियों को हम तपागच्छ से सम्बद्ध पाते हैं।१८ इस गच्छ के प्रमुख आचार्यों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है : अभयदेवसूरि : श्वेताम्बर परम्परा में अभयदेवसूरि नामक कई आचार्य हो चुके हैं । विवेच्य अभयेदवसूरि प्रश्नवाहनकुल व माध्यमिकाशाखा से सम्बद्ध हर्षपुरीयगच्छ के आचार्य जयसिंहसूरि के शिष्य थे । प्रस्तुत लेख के प्रारम्भ में इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा रचित जिन ग्रन्थों की प्रशस्तियों का विवरण दिया जा चुका है, उन सभी में इनके मुनि जीवन के बारे में महत्त्वपूर्ण विवरण संकलित है। चौलुक्य नरेश कर्ण (वि० सं० ११२०-११५०)ने इनकी निस्पृहता और त्याग से प्रभावित होकर इन्हें 'मलधारी' विरुद् प्रदान की । कर्ण का उत्तराधिकारी जयसिंह सिद्धराज (वि० सं० ११५०-११९९) भी इनका बड़ा सम्मान करता था । इनके उपदेश से उसने अपने राज्य में पर्युषण और अन्य विशेष अवसरों पर पशुबलि निषिद्ध कर दी थी। गोपगिरि के राजा भुवनपाल (वि० सं० की १२वीं शती का छठा दशक) और सौराष्ट्र के राजा राखेंगार पर भी इनका प्रभाव था। अपनी आयुष्य को क्षीण जानकर इन्होंने ४५ दिन तक अनशन किया और अणहिलपुरपत्तन में स्वर्गवासी हुए। इनकी शवयात्रा प्रातःकाल प्रारम्भ हुई और तीसरे प्रहर दाहस्थल तक पहुची । जयसिंह सिद्धराज ने अपने परिजनों के साथ राजप्रासाद की छत पर से इनकी अन्तिम यात्रा का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698