Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 8
________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास अनुशंसा भारतीय संस्कृति का वैचारिक वैभव विश्व में सर्वाधिक समीचीन एवं तर्कसंगत है। जैन, बौद्ध व वैदिक - तीनों प्रमुख परम्पराओं के दर्शन तथा सिद्धान्त से परिपूर्ण ग्रन्थ सार्वजनीन वर्गीकरण व सामाजिक संविधान को प्रतिपादित करने में सक्षम व मान्य रहे हैं। अनेकानेक आगम, वेद, पुराण, विविध ग्रन्थ तथा विशाल पुस्तकालयों की आगम ज्ञान सरिता में अवगाहन करने के पश्चात् विदुषी साध्वी श्री प्रतिभाश्री जी " प्राची" ने चतुर्विध जैन संघ में श्राविकाओं का योगदान " अनुपम शोध प्रबन्ध अत्यन्त कुशलतापूर्वक तैयार कर यह प्रमाणित कर दिया है कि श्राविका (नारी) जहाँ एक ओर आचरण, सहनशीलता, त्याग, तपस्या, प्रेम, करुणा, उपकार, कृतज्ञता, साहस, सेवा, एवं श्रद्धा आदि गुणों से प्राकृतिक रूपेण सम्पन्न है, वहीं वह धर्म व शासन की प्रमुख धुरी भी है। अज्ञानतिमिरतरणि, महान शिक्षाशास्त्री जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी म.सा. ने पचास वर्ष तक अपने विविध प्रवचनों के माध्यम से श्रमणी एवं श्राविका वर्ग के उत्थान व प्रतिष्ठा के सरलतम प्रयास किए थे। "प्राचीजी" का यह अद्भुत शोध ग्रन्थ जैन ही नहीं अपितु समग्र मानव जाति के लिए नारी की अन्तश्चेतना को आधिभौतिक से उठाकर आध्यात्मिक स्तर पर प्रतिष्ठित करने का सफल व प्रशंसनीय प्रयास कहा जाएगा। मैं जैन इतिवृत्त के एक महत्वपूर्ण खण्ड को नवीन आयाम प्रदान करने वाले इस सुकृत्य की भूरि-भूरि प्रशंसा व अनुमोदना करता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only वेजय नित्यानन्द सूरि रूप नगर, दिल्ली - ७ www.jainelibrary.org

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