Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 11
________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास मंगल-मनीषा भारतीय संस्कृति के सुमेरू शृंग पर स्वर्ण लेख से उटुंकित जैन संस्कृति विश्व की एक अनन्यतम संस्कृति है जिसके अध्यात्म का अनहद नाद जिनवाणी के तारों पर बजा करता है। यहाँ पुरूषों के समकक्ष स्त्रियों ने भी तप, त्याग, वैराग्य, भक्ति, प्रेम से अनुरंजित रहकर विश्व मंगल और लोक कल्याण हितार्थ उल्लेखनीय योगदान दिया है। जीवन को नया मोड़ देने वाली, अन्धकार में प्रकाश की किरण बनकर चमकने वाली, भयंकर अपवाद, विवाद और प्रमाद के प्रसंगों में जीवन को स्फूर्ति, शाक्ति व प्रसन्नता देने वाली जगज्जननी महिमामयी नारी प्रकृति का एक अनुपम वरदान ही है। नारी के सम्बन्ध में आचार्य देवेन्द्र मुनिजी म.सा. ने बड़ा सुन्दर व सटीक चित्रण किया है नारी की जीवन गाथा बड़ी विचित्र रही है। कभी इसने अपनी वीरता से संसार को नतमस्तक किया, कभी अपने पुरूषार्थ से असम्भव को सम्भव किया। समय के परिवर्तन के साथ नारी की अवस्थाएँ भी बदलती हैं। कभी वे माता के रूप में पूजी गई, तो कभी विषय-वासना की पुतली बनी। रीतिकाल में वह रति के समान काम्या बनीं और भोग्या के रूप में कामातुरों के लिये प्रेयसी कहलाई । यद्यपि तीर्थंकरों की माताएँ प्रणम्य हैं, आराध्या हैं, आदर्शवाद की प्रतीक हैं, फिर भी सामान्य नारी के लिये कथाकारों ने कई ऐसे प्रंसग उपस्थित किये हैं, जो उसकी गरिमा के लिये उपयुक्त नहीं कहे जा सकते। यह सब होते हुए भी नारी ने जिस धैर्य से अपने शील को सुरक्षित रखा है, वह चिरस्मरणीय है, चिरवन्दनीय है तथा युगों-युगों तक कालजयी होने के कारण अमर है। भगवती ब्राह्मी, वैराग्यमूर्ति सुन्दरी, धैर्य की देवी दमयंती, महासती सीता, राजमती, प्रभावती, मृगावती, चन्दनबाला, सुभद्रा, अंजना, मदनरेखा, चेलना, आदि क्या कभी भुलाई जा सकती हैं? कभी नहीं। उनकी उदारता, दया, क्षमा, सरलता, सत्य, समर्पण, श्रम, दान, लज्जा, मर्यादा, विनय, कला, मैत्री, शील, स्वाभिमान, संकल्प, बलिदान, साहस, त्याग, कर्तव्यनिष्ठा, दृढ़ता, संयम, सन्तोष, अहिंसा आदि गुण सृष्टि में सदा चिरंतन रूप से जीवित रहेंगें। विदुषी महासती श्री प्रतिभाश्री ने इस ग्रन्थ के प्रणयन में अपनी व्यापक दृष्टि और गहन अध्ययन का परिचय दिया है। इतिहास ग्रन्थमाला में भूमिका रूप में सभी धर्मो की नारियों के साथ जैनधर्म की नारियों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है, तत्पश्चात् ऋषभदेव के समय से लेकर चौबीसवें तीर्थकर भगवान् महावीर तक के समय की नारियों के योगदान इतिहास ग्रन्थ में समाविष्ट किया है। इतना ही नहीं. आधनिककाल की जैन नारियों का उज्ज्वल इतिहास के सुनहले पृष्ठ भी साथ-ही-साथ खुलते से नजर आते हैं। प्रस्तुत वर्ण्य विषय ऐसे हैं, जिन पर स्वतन्त्र रूप से कई शोध ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ शोध अध्येताओं के लिये मार्गदर्शक का काम भी करता है। इसमें जैन धर्म की प्राचीन संस्कृति एवं कला की सामग्री भी संकलित है। Sesce ARROR00868806ARE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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