Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas
Author(s): Pratibhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 10
________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास है कि धार्मिक जगत् में नारी का योगदान नर की अपेक्षा बहुत अधिक है। उसे हम प्रत्यक्ष देख सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं । महासागर को गागर में भरने का प्रयत्न : चतुर्विध धर्म संघ में श्राविकाओं का योगदान इतना बृहद् विषय है जिसकी कल्पना कर पाना कठिन है। जैन धर्म संघ श्री आदिनाथ भगवान् के समय से चला आ रहा है। ऐतिहासिक काल ही बड़ा विराट् है उसमें करोड़ों श्राविकाएँ धर्म संघ में अविस्मरणीय योगदान दे चुकी हैं। प्रागैतिहासिक काल में संख्यातीत श्राविकाएँ समाज को अकल्पनीय योगदान प्रदान कर चुकी हैं । इतने विराट् श्राविका रत्नों, नारी रत्नों के सागर को एक पुस्तिका में समेटने का प्रयास वास्तव में हम सबके लिये प्रेरणाप्रद है । अपने शोध विषय को सार्थक करने के लिये अभिलेखीय साक्ष्यों को जुटाने के लिये जो प्रयत्न हुआ है, उससे साध्वीजी की कर्मठता प्रत्यक्ष झलकती है। जैन साहित्य जगत साध्वीजी के लिए सदियों सदियों तक आभारी रहेगा। उनके अनुग्रह से अनुगृहीत रहेगा । परिचय देने की अनुत्कण्ठा : भारतीय साहित्यकारों, कवियों, काव्यकारों, महान् लेखकों, समाज सेवकों के सम्बन्ध में जब भी कुछ जानने का प्रयत्न किया जाता है, तो उनका परिचय मिलता ही नहीं है। जितने भी ऐतिहासिक युग के कवि, लेखक, साहित्यकार, मूर्तिकार, विद्वान आदि हुए हैं, उनका परिचय विवादास्पद रूप से उपलब्ध होता है। कहीं-कहीं लिखे गये के आधार पर ही हमें उनका परिचय भिन्न-भिन्न किंवदन्तियों से जोड़कर तैयार करना पड़ता है। उसमें भी नारी जाति ने तो जो कुछ भी किया है, वह सब बेनाम, बिना परिचय के ही किया है। उन्होंने अविस्मरणीय सेवा कार्यों को बिना नाम के किया है, पर्दे के पीछे रहकर किया है तथा नींव का पत्थर बन करके किया है। ऐसी स्थिति में श्राविकाओं का इतिहास खोजने का प्रयत्न करना उनके ऐतिहासिक तथ्यों को जोड़ने का प्रयत्न करना अपने आपमे बड़ा ही दुरूह कार्य है जिसे साध्वी प्रतिभाश्रीजी म.सा. ने सहज रूप में ही कर दिखाया है। जिन-जिन ऐतिहासिक रत्नों को सागर की तलहटी में जा जाकर के निकाल लाने का प्रयत्न हुआ है, वह सराहनीय है। इस ग्रन्थ में ऐसे-ऐसे प्रसंग आए हैं, जिन्हें पढ़कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं, दिल-दिमाग आश्चर्य से भर उठता है। हर पल प्रशंसा करते रहने की भावना बनी रहती है। शोधग्रन्थ को सुन्दर, उपयोगी एवं आकर्षक बनाने का पूरा-पूरा ध्यान रखा गया है। शोधार्थी ने उस सम्पूर्ण कालखण्डको सात भागों में बाँट करके एक-एक खण्ड को एक-एक अध्ययन के रूप में प्रस्तुतीकरण देकर इस ऐतिहासिक दस्तावेज को बड़ा उपयोगी बना दिया है। इस विषय पर तथा सम्बन्धित विषयों पर कार्य करने वाले शोधार्थियों के लिये यह शोधग्रन्थ बड़ा ही सुखद एवं सर्वथा उपयोगी सिद्ध होगा । भारतीय इतिहास में "चतुर्विध जैन संघ में श्राविकाओं का योगदान " मील के पत्थर का काम करेगा। इससे और कुछ-न-कुछ कर गुजरने की भावना प्रबल हो जायेगी। इस प्रकार अच्छे साहित्य से ज्ञानवृद्धि भी होती है, साथ-ही-साथ पाठकों को नयी-नयी प्रेरणाएँ भी मिलती रहती हैं। नारी समाज में " श्राविका का स्थान स्वभावतः ऊँचा होता है। जो स्त्री से ऊपर उठ जाती है, स्वपर कल्याण की भावना में लग जाती है उनके विशेष चार्सिक गुणों का विकास हो जाता है। जब धर्म, श्रद्धा एवं धर्माचरण की वृत्ति बढ़ने लगती है तब नारी श्राविका के सम्मान को प्राप्त क ती है। ऐसी श्राविकाएँ अनेक विध समाज सेवा की भावना से ओत-प्रोत होती हैं। समाज के ऐसे छिपे हुए रत्नों को उजागर करूं का अतिकठिन कार्य है- "चतुर्विध धर्म संघ में श्राविकाओं का योगदान" शोध प्रबन्ध । महासती "प्राची" ने ऐसे विषय को उजाग करने का प्रयत्न किया है। समय की मोटी परत के नीचे दबी हुई नारी-रत्नों को उजागर करके सामाजिक समृद्धि बढ़ाया है। इसके लिये शोधार्थी का हार्दिक हार्दिक अभिनन्दन । Jain Education International For Private & Personal Use Only पू. डॉ. विशालमुनि जी म.सा. www.jainelibrary.org

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