Book Title: Jain Shravikao ka Bruhad Itihas Author(s): Pratibhashreeji Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur View full book textPage 6
________________ जैन श्राविकाओ का बृहद् इतिहास आचार्य श्री शिव मुनिजी का शुभाशीष चतुर्विध श्री संघ में चारों तीर्थों का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है। भगवान् महावीर के शासन में चतुर्विध संघ को बराबर का महत्त्व दिया गया है। साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप चतुर्विध संघ भगवान् की वाणी का अनुकरण करते हुए अपनी आत्म साधना तथा जिनशासन की प्रभावना में सतत प्रयत्नशील रहते हैं। ___महासाध्वी श्री प्रतिभाश्री जी महाराज "प्राची" ने "चतुर्विध जैन संघ में श्राविकाओं का योगदान” नामक शोध ग्रन्थ तैयार किया है। उनका यह प्रयास हमें दर्शाता है कि जिन शासन में कहीं कोई भेदभाव नहीं है। श्राविकाओं के योगदान और उनके द्वारा किये गये कार्यों का उल्लेख, नारी का मनोबल, विपत्तियों में सहनशीलता, समाजोत्थान और शिक्षा में जो योगदान श्राविकाओं ने दिया है, उसे समाज के समक्ष प्रस्तुत किया है. यह एक ऐतिहासिक कार्य इतिहास अतीत का दर्पण होता है। वर्तमान इतिहास से प्रेरणा लेता है कि हम किस प्रकार अपने भविष्य को सुन्दर बना सकते हैं। अपने गौरवमय इतिहास को पढ़कर प्रत्येक व्यक्ति का सर ऊँचा उठता है। उससे प्रेरणा ले कर स्वयं भी अपने जीवन को उन्नत करता है। जिनशासन में तीर्थंकर की माता को रत्नकुक्षी कहा जाता है। जो माता तीर्थंकर को जन्म देती है, उसका आदर मान और उसकी कुक्षी को नमस्कार किया जाता है। भगवान् महावीर की माता त्रिशला भी एक श्राविका थी। ऐसी ही अनेक श्राविकाएँ-धर्म का पालन करते हुए संयम मार्ग की ओर बढ़ीं। अनेक श्राविकाओं ने इतिहास में विशिष्ट कार्य किये हैं, जैसे साधना के लिये गुफाओं का निर्माण कराना, शिक्षण संस्थाओं का निर्माण करना, महिलाओं को शिक्षित करने का प्रयास करना आदि। ऐसे अनेक कार्य हैं जो पहले भी हुए हैं, वर्तमान में चल रहे हैं और भविष्य में भी चलते रहेंगे। यह शोध ग्रन्थ सबके लिये एक प्रेरणादायी शिलालेख बन जाए, जिसे पढ़कर हमारा समाज अपने भविष्य को उज्ज्वल करे, यही हार्दिक मंगल मनीषा है। - एस.एस. जैन सभा जैन स्थानक, शिवपुरी लुधियाना- पंजाब दिनांक : २५ दिसम्बर २००८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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